अंतरिक्ष में घूमता दिखेगा लकड़ी से बना सैटेलाइट, दुनिया में पहली बार ये देश करने जा रहा कारनामा
जापान के वैज्ञानिकों ने लकड़ी से बना दुनिया का पहला सैटेलाइट बनाया है।जिसे वह जल्द ही लॉन्च करने जा रहा है।
जापान अपनी वैज्ञानिक ताकत और टेक्नोलॉजी के बारे में दुनियाभर में जाना जाता है. जनवरी में ही जापान ने चंद्रमा की सतह पर अपने पहले अंतरिक्षयान की सफल लैंडिग कराई. इसके बाद जापान अमेरिका पूर्व सोवित संघ, चीन और भारत के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पांचवा देश बन गया. अब जापान अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और कारनामा करने जा रहा है. दरअसल, जापान अब दुनिया के पहले लकड़ी से बने सैटेलाइट को लॉन्च करने जा रहा है. जिससे अंतरिक्ष में फैले कबाड़ में इजाफा न किया जा सके।
दुनिया का पहला लड़की से बना सैटेलाइट
दरअसल, जापान के वैज्ञानिकों ने लकड़ी से बना दुनिया का पहला सैटेलाइट बनाया है. जिसे वह जल्द ही लॉन्च करने जा रहा है. जापानी वैज्ञानिकों ने इस सैटेलाइट को लिग्नोसैट नाम दिया है. लिग्नोसैट मैगनोलिया लकड़ी से बनाया गया पहला सैटेलाइट है. जिसे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर किए गए प्रयोगों में स्थिर और दरार के लिए प्रतिरोधी पाई गई थी. जापान के वैज्ञानिक अब इस सैटेलाइट को इसी साल गर्मियों में लॉन्च करने की योजना बना रहा है. बताया जा रहा है कि इस सैटेलाइट को अमेरिकी रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा।
किसने बनाया है लकड़ी का सैटेलाइट
गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सैटेलाइट को क्योटो यूनिवर्सिटी और लॉगिंग कंपनी सुमितोमो वानिकी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. जिसका मकसद है कि लकड़ी जैसी बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों का उपयोग अंतरिक्ष के लिए कैसे किया जाए. साथ ही उसके बारे में जानना. जिससे ये पता लगाया जा सके कि इन चीजों का पर्यावरण के अनुकूल विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं।
क्या है इस सैटेलाइट को बनाने की वजह
बता दें कि कुछ साल पहले जापानी अंतरिक्ष यात्री और एयरोस्पेस इंजीनियर ताकाओ दोई ने कहा था कि पृथ्वी के वायुमंडल में फिर प्रवेश करते ही सभी सैटेलाइट्स जल जाती हैं. जलने के बाद इनसे छोटे एल्यूमिना कण बन जाते हैं. ये कण धरती के ऊपरी वायुमंडल में कई साल तक तैरते रहते हैं. उन्होंने कहा था कि आने वाले दिनों में इनका असर धरती के पर्यावरण पर पड़ेगा।
हालांकि अगर ये लकड़ी के होंगे तो पूरी तरह नष्ट हो जाएंगे और कुछ भी शेष नहीं बचेगा. ताकाओ दोई के इस बयान के बाद शोधकर्ताओं ने लकड़ी की सैटेलाइट बनाने का फैसला लिया. लकड़ी की सैटेलाइट बनाने के लिए कई किस्म की लकड़ियों की जांच की गई. इस दौरान लकड़ी की क्षमता को परखा गया कि वे पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में लंबी उड़ान भरने में सक्षम हैं या नहीं।
आईएसएस भेजे लगए लकड़ी के नमूने
लकड़ी की इस जांच के बाद कुछ नमूने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भेजे गए. जिसे धरती पर लाने से पहले एक साल तक परीक्षण किया गया. इस दौरान वैज्ञानिक यह देखकर हैरान थे कि लकड़ी को कोई नुकसान नहीं हुआ था. इसके बाद वैज्ञानिकों ने माना कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अंतरिक्ष में कोई ऑक्सीजन नहीं है, जो लकड़ी को जला सकती हो. साथ ही ये कोई जीवित चीज भी नहीं कि जो सड़ जाए।
रिसर्च टीम के प्रमुख मुराता के मुताबिक, उन्होंने जापानी चेरी समेत कई लकड़ियों पर परीक्षण किया, लेकिन सैटेलाइट बनाने के लिए मैगनोलिया पेड़ों की लकड़ी सबसे मजबूत पाई गई. इसलिए इसी लकड़ी से सैटेलाइट बनाने का निर्णय लिया गया. वैज्ञानिकों का कहना है कि उनका ये प्रयोग सफल रहा तो आने वाले दिनों में अंतरिक्ष में लड़की से बने उपग्रहों का ही इस्तेमाल किया जाएगा।
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