अपने घट दियना बारू रे
भारतीय पर्वो में दीपावली का अपना एक गुढ़ अर्थ और आध्यात्मिक महत्व रहा है। भगवान बुद्ध ने कहा “आत्म दीपो भव” यानि अपना प्रकाश स्वंय बनो। संत कबीर साहब ने कहा “अपने घट दियना बारू रे” अर्थात अपने शरीर रुपी घट में प्रकाश रुपी दीप जलायें। इन संत महापुरुष का कहना है कि सांसारिक दीपावली के साथ- साथ पारमार्थिक दीपावली भी मनायें। अपने अंतर्मन में ज्ञान, वैराग्य, दया, प्रेम जैसे सदगुण रुपी दीप जलाकर खुद को और संसार को प्रकाशित करें।
हर साल दीपावली पर करोड़ों रुपयों के पटाखों का उपयोग होता है। यह सिलसिला कई दिन तक चलता है। कुछ लोग इसे फिजूलखर्ची मानते हैं तो कुछ उसे परम्परा से जोड़कर देखते हैं। पटाखों से बसाहटों, व्यावसायिक, औद्योगिक और ग्रामीण इलाकों की हवा में तांबा, कैल्शियम, गंधक, एल्यूमीनियम और बेरियम प्रदूषण फैलाते हैं। धातुओं के अंश कोहरे के साथ मिलकर अनेक दिनों तक हवा में बने रहते हैं। उनके हवा में मौजूद रहने के कारण प्रदूषण का स्तर कुछ समय के लिये काफी बढ़ जाता है।
आसमान में छाई धुंध और कम हवा के कारण धूल, गंदगी और डीजल, पेट्रोल वाहनों और औद्योगिक धुएं के कण ऊपर नहीं उठ पाते और नीचे ही नीचे वायु को ज़हरीला और दमघोंटू बना देते हैं। इस दमघोंटू माहौल का एक अहम कारक खेतों में फसल के अवशेष (पराली) जलाने से फैली धुएं की चादर भी है, जो हवा की दिशा में पास पड़ोस से लेकर दूसरे राज्यों व शहरों तक पर छा जाती है।
विभिन्न कारणों से देश के अनेक इलाकों में वायु प्रदूषण सुरक्षित सीमा से अधिक है। ऐसे में पटाखों से होने वाला प्रदूषण, भले ही अस्थायी प्रकृति का होता है, उसे और अधिक हानिकारक बना देता है। पटाखों के चलाने से स्थानीय मौसम प्रभावित होता है। आवाज के 10 डेसीबल अधिक तीव्र होने के कारण आवाज की तीव्रता भी दोगुनी हो जाती है, जिसका बच्चों, गर्भवती महिलाओं, दिल तथा सांस के मरीजों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। पटाखे से निकलने वाले धुएं, रसायन और गंध दमा के रोगियों के लिए घातक साबित होते हैं। इसलिए दिवाली के दिन और उसके बाद के कुछ दिनों में भी दमा के रोगियों को हर समय अपने पास इनहेलर रखना चाहिए और पटाखों से दूर रहना चाहिये। इन दिनों उनके लिये सांस लेने में थोड़ी सी परेशानी या दमे का हल्का आघात भी घातक साबित हो सकता है।
पटाखों के कारण वातावरण में हानिकारक गैसों तथा निलंबित कणों का स्तर बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण फेफड़े, गले तथा नाक संबंधी गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। दिवाली से पहले अधिकतर घरों में रंग-रोगन कराया जाता है, घरों की सफाई की जाती है। पेंट के गंध एवं धूल-कण सांस के रोगियों के लिए आफत बन जाती है। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से सांस संबंधी समस्याएं, लंग्स में दिक्कत, दिल की बीमारी तक हो सकती है, इसलिए जरूरी है कि आप प्रदूषण से अपने आपको बचाकर रखें। आजकल दिल्ली में और देश के अन्य हिस्सों में प्रदूषण का असर बहुत बढ़ गया है जिससे लोगों को कई तरह की समस्याएं होने लगी है। दमघोंटू धुंध और ज़हरीली हवा ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। लोगों, खासकर दमा और दिल के मरीज़ों को तो बेहद तकलीफ हो रही है, सामान्य लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
दिवाली खुशियों और उल्लास का त्योहार है। आप फूड वेस्टेज को कम करने में मदद कर पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं और गरीब बच्चों व परिवारों को मिठाइयां व कपड़े बांट सकते हैं। यह न सिर्फ आपकी दिवाली को खास बना देगा, बल्कि आसपास के माहौल को भी खुशनुमा बना देगा। खरीदारी करने में पर्यावरण के अनुकूल और प्राकृतिक संरक्षण को ध्यान रखना चाहिए।
आज के समय में विज्ञान ने कितनी तरक्की कर ली है। सरकार को पटाखा निर्माताओं को कम धुआं और आवाज करने वाले ‘एनवायरमेंट फ्रेंडली पटाखों’ के आविष्कार के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। सरकार और पर्यावरण प्रेमी पर्यावरण को बचाना चाहते हैं तो उन्हें पटाखों के निर्माण और उनकी क्वालिटी पर पूरा ध्यान देने की जरूरत है न कि पटाखे जलाने से रोकने पर। वरना दीवाली अंधकार पर प्रकाश की नहीं, बल्कि प्रकाश पर धुएं की विजय का ही त्यौहार बनी रहेगी। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले उत्पादों को खरीदने से बचना चाहिए।