आर्थिक सर्वेक्षण में रोजगार डाटा: बेरोजगारी दर में गिरावट, महिला स्‍व-रोजगार की तरफ कदम

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देश में कोरोना के बाद से बेरोजगारी दर में गिरावट दर्ज की गई है। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में इससे संबंधित आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं। सरकार ने कहा है कि देश में बेरोजगारी दर में हाल के वर्षों में गिरावट आई है। श्रम और रोजगार राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने कहा कि नवीनतम उपलब्ध वार्षिक आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 2020-21 में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए अनुमानित बेरोजगारी दर 4 दशमलव 2 प्रतिशत थी। 2022-23 में यह दर 3 दशमलव 2 प्रतिशत रही।

महिलाएं स्‍व-रोजगार की ओर बढ़ रही आगे

वहीं केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा ‘आर्थिक समीक्षा 2023-24’ में उपयुक्‍त रोजगार अवसर सृजित करने के भारत सरकार के दृष्टिकोण पर विशेष जोर दिया गया है, जो कि भारत के युवाओं की अपेक्षाओं के अनुरूप है और किसी भी देश में सिर्फ एक बार मिलने वाले विशाल युवा आबादी संबंधी लाभ का सदुपयोग करने के लिए अत्‍यंत आवश्‍यक है।

कामगारों के रोजगार की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए आर्थिक समीक्षा में उल्‍लेख किया गया है कि यह महिला कार्यबल ही है जो स्‍व-रोजगार की ओर उन्‍मुख हो रही है, जबकि पुरुष कार्यबल की हिस्सेदारी स्थिर पाई गई है, जैसा कि पिछले छह वर्षों में महिला एलएफपीआर में उल्लेखनीय वृद्धि से स्पष्ट होता है और जो ग्रामीण महिलाओं के कृषि एवं उससे संबंधित गतिविधियों में शामिल होने से ही संभव हो पा रहा है।

युवाओं एवं महिलाओं को रोजगार

आर्थिक समीक्षा में यह बताया गया है कि युवा (उम्र 15-29 साल) बेरोजगारी दर का पीएलएफएस डेटा (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण) वर्ष 2017-18 के 17.8 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 10 प्रतिशत रह गया है। ईपीएफओ के पेरोल में लगभग दो-तिहाई नए सदस्य 18-28 साल की उम्र के हैं।

आर्थिक समीक्षा में लगातार छह वर्षों से बढ़ती महिला श्रमबल भागीदारी दर (एफएलएफपीआर) पर भी प्रकाश डाला गया है और इसका श्रेय अनगिनत कारकों को दिया गया है, जिनमें कृषि उत्‍पादन की निरंतर ऊंची वृद्धि दर शामिल है और इसके साथ ही एक अहम बात यह है कि पाइप से पेयजल, स्‍वच्‍छ रसोई ईंधन, एवं स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं का व्यापक विस्तार होने से अब पहले के मुकाबले महिलाओं का कहीं ज्यादा समय बच पा रहा है।

ग्रामीण क्षेत्रों और कारखानों में रोजगार बढ़ा

संगठित विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर बेहतर होकर अब महामारी पूर्व स्‍तर से भी अधिक हो गई है और इसके साथ ही पिछले पांच वर्षों के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी वृद्धि दर अपेक्षाकृत अधिक रही है, जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में वस्‍तुओं एवं सेवाओं की मांग बढ़ाने की दृष्टि से शुभ संकेत है। वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2022 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति कामगार की मजदूरी 6.9 प्रतिशत के सीएजीआर (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) से बढ़ी, जबकि शहरी क्षेत्रों में मजदूरी 6.1 प्रतिशत के सीएजीआर से ही बढ़ी।

छह राज्यों में सबसे ज्यादा रोजगार

यदि राज्यवार गौर करें, तो कारखानों की कुल संख्‍या की दृष्टि से शीर्ष छह राज्‍य इसके साथ ही कारखानों में सर्वाधिक रोजगार सृजन कर्ता भी रहे हैं। कारखानों में 40 प्रतिशत से भी अधिक रोजगार अवसर तमिलनाडु, गुजरात और महाराष्‍ट्र में सृजित हुए। इसके विपरीत वित्त वर्ष 2018 और वित्त वर्ष 2022 के बीच सर्वाधिक रोजगार वृद्धि ऐसे राज्यों में दर्ज की गई जिनकी कुल युवा आबादी में अपेक्षाकृत अधिक हिस्सेदारी है और जिनमें छत्तीसगढ़, हरियाणा और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।

आर्थिक समीक्षा में कम्प्यूटर एवं इलेक्‍ट्रानिक्‍स, रबर व प्लास्टिक उत्पादों, और रसायनों के बढ़ते उपयोग का भी उल्लेख किया गया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि भारत में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र संबंधित मूल्य श्रृंखला में ऊपर की ओर जा रहा है और इसके साथ ही ये मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में रोजगार सृजन करने वाले नवोदित क्षेत्रों के रूप में उभरकर सामने आए हैं।

ईपीएफओ के सदस्‍यों की संख्‍या लगातार बढ़ रही है

ईपीएफओ के पेरोल में सालाना वृद्धि वित्त वर्ष 2019 के 61.1 लाख से दोगुनी से भी अधिक होकर वित्त वर्ष 2024 में 131.5 लाख हो गई। महामारी से जल्‍द-से-जल्‍द उबरने और आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) शुरू करने से ही इतनी वृद्धि संभव हो पाई है। ईपीएफओ के सदस्यों (जिसके लिए पुराना डेटा उपलब्‍ध है) की संख्या भी वित्त वर्ष 2015 और वित्त वर्ष 2024 के बीच 8.4 प्रतिशत के सीएजीआर से बढ़ी है।

ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी का रुझान

आर्थिक समीक्षा 2023-24 में उल्‍लेख किया गया है कि वित्त वर्ष 2024 में ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी प्रति माह 5 प्रतिशत से भी अधिक की दर से बढ़ी और कृषि क्षेत्र में सालाना आधार पर एवं औसतन अनुमानित मजदूरी दर पुरुषों के लिए 7.4 प्रतिशत और महिलाओं के लिए 7.7 प्रतिशत बढ़ गई जो कि इस अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में दमदार वृद्धि दर हासिल करने से ही संभव हो पाई। इसी अवधि के दौरान गैर-कृषि गतिविधियों में मजदूरी वृद्धि दर पुरुषों के लिए 6.0 प्रतिशत और महिलाओं के लिए 7.4 प्रतिशत आंकी गई। आने वाले समय में विभिन्न वस्तुओं के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के साथ-साथ देश में भी खाद्य पदार्थों के दाम घटने से महंगाई कम होने की आशा है। इसे ध्यान में रखते हुए आर्थिक समीक्षा में उम्‍मीद जताई गई है कि इसकी बदौलत वास्तविक मजदूरी में निरंतर वृद्धि होगी।

रोजगार सृजन करने में केंद्र सरकार के प्रयास

सरकार ने रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए अनेक उपाय लागू किए हैं-

–भारत के मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की क्षमता बढ़ाने के लिए उत्पादन से सम्बद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना शुरू की गई है, पूंजीगत व्यय में वृद्धि की गई है, इत्यादि और इसके साथ ही कामगारों के कल्याण को काफी बढ़ावा दिया गया है।

–आसानी से कर्ज की उपलब्धता सुनिश्चित करके और प्रक्रिया से जुड़े अनेक सुधारों को लागू करके स्‍व-रोजगार को बढ़ावा दिया गया है।

–रोजगार सृजन को बढ़ावा देने और कामगारों के कल्याण के लिए शुरू की गई कुछ पहलों का उल्लेख किया गया है, जैसे कि राष्ट्रीय करियर सेवा (एनसीएस) पोर्टल का शुभारंभ किया गया है, ई-श्रम पोर्टल की शुरुआत की गई है।

–कोविड-19 के बाद रोजगार में हुई कुल कमी आने के बाद सामाजिक सुरक्षा लाभों के साथ रोजगार को बढ़ावा देने के लिए आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) शुरू की गई है।

–‘एक देश एक राशन कार्ड’ जैसे कार्यक्रम चलाए गए हैं और वर्ष 2019 एवं वर्ष 2020 में 29 केंद्रीय कानूनों का विलय चार श्रम संहिताओं में किया गया।

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