ईरान के राष्ट्रपति की अचानक मौत से इजराइल और हमास की जंग पर क्या असर पड़ेगा?

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मध्य पूर्व के हालात दिन-ब दिन बिगड़ते जा रहे हैं. पिछले सात महीनों से ज्यादा से गाजा में भीषण जंग जारी है और सीरिया में हुए ईरानियन एंबेसी हमले के बाद ईरान और इजराइल भी सीधे तौर पर आमने सामने हैं. सोमवार सुबह ईरान मीडिया ने जानकारी दी कि रविवार को अजरबैजान की सीमा से लौटते हुए हेलिकॉप्टर हादसे में राष्ट्रपति रईसी और विदेश मंत्री समेत 9 लोगों की मौत हो गई है.

इस घटना के बाद ईरान में शोक घोषित कर दिया गया है और ईरान की एजेंसियां हादसे की वजहों की जांच करने में लगी हैं. ईरान पहले से पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और देश में महिला अधिकारों पर विरोध प्रदर्शनों की मार झेल रहा है. इसके अलावा अब ईरान के राष्ट्रपति पद की कुर्सी खाली होना ईरान की निजी और बाहरी राजनीति के लिए संकट पैदा कर सकता है. हालांकि, रईसी की जगह उपराष्ट्रपति अगला चुनाव होने तक ये पद संभाल लेंगे लेकिन रईसी का कद काफी बड़ा था. उन्हें अगले सुप्रीम लीडर के तौर पर देखा जाता था.

गाजा जंग पर क्या पड़ेगा असर?

राष्ट्रपति रईसी गाजा युद्ध की शुरुआत से ही इजराइल का विरोध करते आए थे. ईरान ने इजराइल को अंतरराष्ट्रीय मंचों और गाजा में घेरने के लिए फिलिस्तीन का हर तरीके से समर्थन किया है. इस वक्त इजराइल की सेना गाजा के आखिरी शहर राफा में पहुंच चुकी है. ऐसे वक्त में ईरान के राष्ट्रपति की मौत फिलिस्तीन के लिए झटका साबित हो सकती है.

50 दिन बाद ही चुना जाएगा नया राष्ट्रपति

ईरान के कानून के हिसाब से राष्ट्रपति की मौत के बाद अगले चुनाव तक उप राष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर देजफुली राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालेंगे है. देश में 50 दिन के अंदर चुनाव कराने होंगे. अब ईरान चुनाव कराने, हादसे की जांच और अन्य निजी मुद्दों में व्यस्त हो जाएगा. जिसका असर इजराइल के खिलाफ लड़ने वाले गुटों को मिलने वाली ईरानी मदद पर पड़ सकता है.

कहा जाता है कि ईरान अपने प्रॉक्सी के जरिए इंटरनेशनल कम्यूनिटी और अपने दुश्मनों को चुनौती देता है. फिलिस्तीन के संगठन हमास को हर तरह का सपोर्ट ईरान देता है. इसके अलावा इजराइल की नाक में दम करने वाले लेबनान के संगठन हिजबुल्ला पर भी ईरान का ही हाथ माना जाता है. दूसरी तरफ, सऊदी अरब की चुनौती से पार पाने के लिए ईरान ने यमन में हूती विद्रोहियों को समर्थन दे रखा है. ये हूती विद्रोही न सिर्फ सऊदी को टेंशन देते हैं, बल्कि इजराइल-हमास जंग के बाद लाल सागर में पश्चिमी देशों के लिए भी हूती सिरदर्द बना है. ये संगठन लाल सागर से गुजरने वाले जहाजों पर मिसाइल बरसाता है जिससे हाल के वक्त में दुनियाभर की सप्लाई चेन भी प्रभावित रही है.

ईरान के सहारे हमास!

पश्चिमी देशों के मुताबिक, हमास को सैन्य और आर्थिक मदद ईरान से मिलती है. जानकार मानते हैं कि ईरान की नीति की जड़ें बहुत गहरी हैं, किसी एक राष्ट्रपति के जाने से इसमें बदलाव आने की उम्मीद कम हैं. ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्ला अली खामेनेई ने भी हेलिकॉप्टर क्रैश की सूचना के बाद अपने देशवासियों को इसी तरह का भरोसा दिया है. ईरान का जो भी नया राष्ट्रपति आएगा उसको भी सुप्रीम लीडर अली खमेनेई की विचारधारा का ही पालन करना होगा. जिससे जाहिर होता है कि ईरान का फिलिस्तीन के लिए स्टैंड तो एकसा रहेगा लेकिन देश के अंदर अगले 50 दिनों तक चलने वाली उथल-पुथल से उसका ज्यादा ध्यान अंदरूनी राजनीति पर रहेगा. अंदरूनी राजनीति में ईरान का उलझना गाजा जंग हमास के लिए बड़ा नुकसान साबित हो सकता है. हमास ने इस घटना पर बयान जारी करते हुए कहा है कि हमें विश्वास है कि ईरान इस क्षति से उबरने में सक्षम होगा.

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