उच्च जातियों के पास है कुल संपत्ति का 𝟖𝟖.𝟒% हिस्सा, लालू यादव का बड़ा दावा, मोदी सरकार पर 𝐎𝐁𝐂, 𝐒𝐂 और 𝐒𝐓 से छल करने का आरोप

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राजद सुप्रीमो लालू यादव ने दावा किया है कि उच्च जातियों के पास देश की कुल संपत्ति का 𝟖𝟖.𝟒% हिस्सा है. वहीं ओबीसी के पास केवल 𝟗.𝟎% और अनुसूचित जाति और जनजाति के पास मात्र 𝟐.𝟔% संपत्ति है। लालू यादव ने रविवार को वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब (विश्व असमानता लैब) की ओर साझा की गई रिसर्च के हवाले से दावा किया कि इसमें पिछड़ों/दलितों और आदिवासियों के लिए डरावने आंकड़े सामने आए है। यह रिसर्च देश में बढ़ती सामाजिक-आर्थिक गैरबराबरी को उजागर करती है।

लालू के अनुसार इस रिपोर्ट के अनुसार उच्च जातियों के पास देश की कुल संपत्ति का 𝟖𝟖.𝟒% हिस्सा है जबकि ओबीसी के पास केवल 𝟗.𝟎% और अनुसूचित जाति और जनजाति के पास मात्र 𝟐.𝟔% है। 𝟐𝟎𝟏𝟑 में 𝐎𝐁𝐂 का देश की संपत्ति में 𝟏𝟕.𝟑% हिस्सा था जो 𝟐𝟎𝟐𝟐 में घटकर 𝟗% ही रह गया है। छोटे और मध्यम आकार के व्यवसाय लगातार घटते जा रहे हैं। कृषि घाटे का सौदा होता जा रहा है। किसान सरकार की गलत नीतियों के चलते बर्बाद हो रहे है। उन्होंने कहा कि सर्वविदित है कि देश में 𝐎𝐁𝐂/𝐒𝐂/𝐒𝐓 की आबादी लगभग 𝟖𝟓% है। यही कारण है कि बीजेपी जातिगत जनगणना नहीं कराना चाहती क्योंकि इससे हर क्षेत्र में कुंडली मारे बैठे संपन्न लोगों का प्रभुत्व उजागर हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि रिसर्च बताती है कि देश की कुल संपत्ति का बड़ा हिस्सा लगभग 𝟖𝟗% हिस्सा, आबादी में सबसे कम वाले वर्गों के पास है तथा देश की सबसे अधिक आबादी वाले 𝟖𝟓% 𝐎𝐁𝐂/𝐒𝐂/𝐒𝐓 के पास बाक़ी बचा हिस्सा है। इससे पता चलता है कि हमारे देश में सामाजिक-आर्थिक असमानता की जड़ें कितनी गहरी हैं। मोदी सरकार लगातार 𝟏𝟎 बरसों से 𝐎𝐁𝐂, 𝐒𝐂 और 𝐒𝐓 वर्ग के छोटे व्यवसायों को भी टारगेट कर खत्म कर रही है।

नरेंद्र मोदी और भाजपा पर निशाना साधते हुए लालू ने कहा, जब तक 𝐎𝐁𝐂, 𝐒𝐂 & 𝐒𝐓 और उच्च जाति के गरीब लोग बीजेपी की भक्ति, धर्मांधता और नफ़रत बोने वाले दंगाइयों को अपना नेता मानेंगे, तो ये आंकड़े और भी बद्तर होते जाएंगे। विगत 𝟏𝟎 वर्षों में इन्होंने आपको यानि 𝐎𝐁𝐂/𝐒𝐂/𝐒𝐓 को धर्म और छद्म राष्ट्र के बनावटी मुद्दों व बहसों में उलझा कर अपनी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सत्ता को ओर अधिक सुदृढ़ एवं सुनिश्चित किया है। ये लोग धूर्तता के साथ 𝐎𝐁𝐂/𝐒𝐂/𝐒𝐓 को सांकेतिक और दिखावटी प्रतिनिधित्व देकर इतिश्री कर देते है ताकि देश की ये बहुसंख्यक आबादी अपने अधिकारों की वाजिब मांग ना कर सके।