एसटी/एससी समुदाय से जुड़े करीब 100 भाजपा सांसदों ने आज शुक्रवार को संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इस दौरान सांसदों ने एसटी/एससी के लिए क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संबंध में संयुक्त रूप से एक ज्ञापन सौंपा और मांग की कि इस फैसले को एसटी/एससी समाज में नहीं लागू किया जाना चाहिए।
सांसदों के मुताबिक पीएम मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस मामले को देखेंगे। पीएम मोदी से मुलाकात के बाद भाजपा सांसद प्रो.सिकंदर कुमार ने बताया कि पीएम मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि सरकार सांसदों के पक्ष में काम करेगी। दोनों सदनों के करीब 100 सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने आज पीएम मोदी से मुलाकात कर अपनी मांगे रखीं।
भाजपा सांसद प्रो. सिकंदर कुमार ने कहा कि हमने पीएम से बताया कि एससी/एसटी से क्रीमी लेयर (पहचानने) (और आरक्षण लाभ से उन्हें बाहर करने) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया जाना चाहिए। इससे पहले केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर असहमति जताई थी और कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) इस फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करेगी।
बता दें कि 1 अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यों के पास एससी और एसटी में उप-वर्गीकृत करने का अधिकार होगा। इसके साथ ही संबंधित प्राधिकरण को यह सुनिश्चत करना होगा कि क्या उस वर्ग का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है,मात्रात्मक प्रतिनिधित्व के बजाय प्रभावी प्रतिनिधित्व के आधार पर पर्याप्तता की गणना करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण के लिए राज्यों को दी थी अनुमति
गौरतलब है कि 1 अगस्त को शीर्ष अदालत ने 6:1 के बहुमत से फैसला सुनाया कि एससी और एसटी आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति है। यह फैसला भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की बेंच ने सुनाया, जिसने ईवी चिन्नैया मामले में पहले के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है क्योंकि एससी/एसटी समरूप (होमोजेनस) वर्ग बनाते हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा बेंच में जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे।
सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई ने सुझाव दिया था कि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में से भी क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए एक नीति विकसित करें। हालांकि जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दिए जाने के पक्ष में असहमति जताई।