मौसम के बदलते तेवर के कारण गर्मी में अप्रत्याशित वृद्धि हो गयी है। गर्म पछुआ हवा के कारण जनजीवन पूरी तरह प्रभावित हो गया है। तपिश के कारण खेतों में लगे हरा पशुचारा पर भी प्रतिकुल असर पड़ा है। जिले में घास की किल्लत हो गयी। इसका असर दूध उत्पादन पर भी दिखने लगा रहा है। मार्च व अप्रैल की अपेक्षा मई में करीब 15 फीसद दूध उत्पाद में गिरावट हो गयी है। इसका नुकसान पशु पालकों को उठाना पड़ रहा है।
इतना ही नहीं घटते उत्पादन इफेक्ट डेयरी उद्योग पर भी दिख रहा है। जिले में डेयरी की करीब नौ सौ समितियां हैं। इनसे 80 हजार से ज्यादा पशुपालक जुड़े हैं। पहले हर दिन समितियों द्वारा करीब एक से डेढ़ हजार हजार लीटर दूध की आपूर्ति रोज की जाती थी। लेकिन, वर्तमान में रोज करीब 75 से 80 हजार लीटर दूध का ही संग्रह हो पा रहा है।
भैस की दूध में सबसे ज्यादा गिरावट :
पशुपालकों का कहना है कि हीटवेव की वजह से सबसे ज्यादा भैंस के दूध में गिरावट आयी है। अमूमन भैंस को पालक खुले स्थानों पर रखते हैं। साथ ही हर दिन खाली पड़े खेतों में उसे घास चराते हैं। परंतु, वीरान खेतों में हरा चारा ढूंढे नहीं मिल रहा है। बांध स्थित खटाल संचालक रौशन यादव कहते हैं कि आग उगल अगला गर्मी के कारण खेत वीरान हैं। घास कहीं दिखता नहीं है। हरा पशु चारा कई किसानों ने लगाया है। लेकिन, गर्म पछुआ हवा चलने से मुरझा गये हैं। मवेशियों को पैकेट बंद पशु आहार खिलाना पड़ रहा है।
मानसून के बाद ही उत्पादन में वृद्धि :
हरा चारा की किल्लत के बीच गर्मी की मवेशी भरभेट भोजन नहीं कर पा रहे हैं। इसक सीधे-सीधे असर दूध उत्पादन पर पड़ा है। किसानों की माने तो मानसून की बारिश के बाद ही दूध का उत्पादन बढ़ सकता है। अभी खेतों में लगी मूंगी की फसल भी तेज धूप के कारण खराब हो रही है। यही स्थिति अन्य फसलों की है। चार दिन पूर्व हुई बारिश से खेतों में नमी लौटी थी लेकिन फिर वहीं स्थिति बन गई है।