केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में संशोधन किया है। इससे उपराज्यपाल की कुछ और शक्तियां बढ़ गई हैं।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (2019 का 34) की धारा 55 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए नियम में संशोधन को अपनी मंजूरी दे दी है।
गृह मंत्रालय (एमएचए) ने एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें बताया गया है कि प्रशासनिक सचिवों और अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों को कैसे स्थानांतरित किया जाएगा और उन्हें नए पद कैसे सौंपे जाएंगे। अधिसूचना के अनुसार, इन स्थानांतरणों से संबंधित प्रस्ताव सामान्य प्रशासन विभाग के प्रशासनिक सचिव द्वारा मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल (एलजी) को भेजे जाने चाहिए।जिन प्रस्तावों को वित्त विभाग से अनुमोदन की आवश्यकता होती है, जहां एलजी के पास विवेकाधीन शक्तियां होती हैं, उन्हें अंतिम अनुमोदन या अस्वीकृति के लिए पहले मुख्य सचिव के माध्यम से एलजी को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि किसी भी प्रस्ताव को, जिसमें अधिनियम के तहत उपराज्यपाल के विवेक का प्रयोग करने के लिए ‘पुलिस’, ‘लोक व्यवस्था’, ‘अखिल भारतीय सेवा’ और ‘भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो’ के संबंध में वित्त विभाग की पूर्व सहमति की आवश्यकता हो, तब तक स्वीकार या अस्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक कि उसे मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल के समक्ष नहीं रखा जाता।
इसके अलावा, गृह मंत्रालय ने मूल नियमों में नियम 42 के अंतर्गत दो धाराएं भी जोड़ीं-“विधि, न्याय और संसदीय कार्य विभाग न्यायालय की कार्यवाही में महाधिवक्ता की सहायता के लिए महाधिवक्ता और अन्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति का प्रस्ताव मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री के माध्यम से उपराज्यपाल के अनुमोदन के लिए प्रस्तुत करेगा।”
और दूसरे में कहा गया, “अभियोजन स्वीकृति देने या अस्वीकार करने या अपील दायर करने से संबंधित कोई भी प्रस्ताव विधि, न्याय और संसदीय कार्य विभाग द्वारा मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल के समक्ष रखा जाएगा।”