प्रेत आत्माओं की बुरी नजर से बचाया जाता है:इस धाम पर हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपने शरीर से बुरी आत्मा को भगाकर बाबा का नाम लेते हुए विदाई लेते हैं. प्रेत आत्माओं की बुरी नजर से लोगों को यहां बचाया जाता है.मंदिर के पंडा राज किशोर मानें, तो यहां 650 सालों से भूतों का मेला लगता है. धाम पर बिहार के अलावा झारखंड, यूपी, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और देश के कई राज्यों से लोग पहुंचते हैं.
“किसी भी प्रकार के रोग से पीड़ित लोग अपने कष्ट को लेकर बाबा के दरबार में पहुंचते हैं. सभी का बाबा हरशु ब्रह्म दुख का निवारण करते हैं. जिससे लोग प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र में भीड़ लगता है. सबसे ज्यादा यहां मानसिक रोगी पहुंचते हैं और ठीक भी हो जाते हैं.”-राज किशोर, चैनपुरी, मंदिर का पंडा
क्या है इतिहास: मंदिर के पांडा राज किशोर चैनपुरी का कहना है कि उत्कल और ब्रजदन्त दो राक्षस थे जो आतंक मचाये हुए थे. तब देवताओं ने भगवान शंकर को तप कर बुलाया जिसके बाद भगवान शंकर ने उत्कल को मार दिया. वहीं ब्रजदन्त महिला का रूप धारण कर लिया जिसके बाद भगवान शंकर ने ब्रजदन्त को श्राप दिया कि तुम अगले जन्म में हमसे मुलाकात होगा तब तुम्हारा अंत होगा. दूसरा जन्म में वहीं राजा सालिवाहन बना और भगवान शंकर हरसू के रूप में अवतरित हुए.
बाबा हरसू ने दूसरी शादी करने की दी सलाह:बताया जाता है कि राजा सालिवाहन की शादी माणिक मति से हुई और राजा के कुलपुरोहित बाबा हरसू बने. पूर्व के श्राप के कारण उनका वंश नहीं चल रहा था तब राजा सालिवाहन ने राजपुरोहित बाबा हरसू से पूछा कि वंश आगे चले इसके लिए क्या करना होगा तब बाबा हरसू ने राजा को दूसरी शादी करने की सलाह दी. जिसके बाद छतीसगढ़ के राजा भूदेव सिंह की पुत्री ज्ञान कुंवारी की शादी राजा सालिवाहन से हुई.
पहली रानी बाबा हरसू को प्रताड़ित करने लगी:बताया जाता है कि पहली रानी बाबा हरसू को प्रताड़ित करने लगी और उनका महल ध्वस्त करा दी,जिसके बाद बाबा हरसू ने अन जल त्याग कर 21 दिन तक पड़े रहे जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई मृत्यु की सूचना सुनते ही माता हंस रानी ने हाथ पर दिया लिए तपस्या करने लगी.जिसके बाद राजा सालिवाहन का राज्य सहित विनाश हो गया उसके बाद से इस स्थल पर हरसू ब्रह्म धाम से पूजा होते आ रहा है.