मणिपुर में एक बार से हिंसा भड़क गई है. मणिपुर के तेंगनोउपल जिले के मोरेह में आज यानी शनिवार दोपहर अज्ञात बंदूकधारियों ने पुलिस फोर्स पर फायरिंग कर दी. गोलीबारी की इस घटना में मणिपुर पुलिस का एक कमांडो घायल हो गया. इससे पहले सुबह पश्चिमी इंफाल के कदंगबंद में कुछ अज्ञात लोगों ने एक ग्राम रक्षक की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
बता दें कि मणिपुर में पिछले 8 महीने से जारी हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रही है. आए दिन यहां हत्या की खबरे आती रहती है. तीन मई 2023 को मणिपुर में भड़की हिंसा में अब तक 180 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जबकि सैंकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं.
बंदूकधारियों ने कमांडो टीम पर चलाईं गोलियां
चश्मदीदों के मुताबिक, अज्ञात बंदूकधारियों ने पुलिस कमांडो को ले जा रहे वाहनों को उस समय निशाना बनाया, जब वे मोरेह से की लोकेशन प्वाइंट’ (KLP) की तरफ बढ़ रहे थे. इस हमले में मणिपुर पुलिस का एक कमांडो घायल हो गया. घायल कमांडो की पहचान 5आईआरबी के पोंखालुंग के रूप में हुई है. असम राइफल्स शिविर में उसका इलाज चल रहा है.
दरअसल, यह घटना उस समय हुई जब मणिपुर पुलिस कमांडो इलाके में नियमित गश्त लगा रहे थे. अज्ञात बंदूकधारियों ने मोरेह की कमांडो टीम पर गोलियां चलाईं और बम फेंके. पुलिस ने बताया कि शुरुआत में दो बम विस्फोट हुए इसके बाद हमलावरों ने अंधाधुंध गोलियां बरसाईं. पुलिस के मुताबिक, करीब 350 से 400 गोलियां चलीं.
इंफाल के कदंगबंद में एक शख्स की गोली मारकर हत्या
वहीं, पश्चिमी इंफाल के कदंगबंद में शनिवार की सुबह कुछ अज्ञात लोगों ने एक ग्राम रक्षक की गोली मारकर हत्या कर दी. मृतक की पहचान जेम्सबॉन्ड निगॉमबम के तौर पर हुई है. पुलिस अधिकारी ने बताया कि वह गांव की सुरक्षा में तैनात था,पास की पहाड़ी से संदिग्ध उग्रवादियों ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी. कदंगबंद की सीमा कंगपोकपी जिले से लगती है. यहां 3 मई के बाद से लगातार हिंसा की घटनाएं देखी गई हैं.
अब तक 180 से ज्यादा लोगों की मौत
मणिपुर में तीन मई को भड़की हिंसा के बाद से अब तक 180 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. जातीय हिंसा भड़कने के बाद से मणिपुर में आए दिन हिंसा भड़कने की खबरें सामने आती रहती हैं. बता दें कि मेइती समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर राज्य में हिंसा भड़की थी. मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 53 फीसदी है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की हिस्सेदारी 40 फीसदी है और वे ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.