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बिहार का यह कुआं है लाल किला से भी पुराना, पानी से ठीक होता हैं कई बीमारी, जानिए इसका इतिहास

BySumit ZaaDav

सितम्बर 20, 2023
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भागलपुर अपने आप में कई इतिहास को समेटे हुए हैं. अंग की धरती कही जाने वाली भागलपुर में कई धरोहर आज भी हैं. जो अब बदहाली की स्थिति में है. आज हम एक ऐसे ही धरोहर के बारे में आपको बता रहे हैं. भागलपुर मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक गांव नगरपारा में यह कुआं अवस्थित है. इस कुआं की विशाल आकृति को देख सब हैरान हो जाते हैं. इस कुआं का इतिहास लाल किले के इतिहास से भी पुराना है. इसका निर्माण साक सम्वत 1634 ईस्वी में हुआ है. इसका पानी कई बीमारी को ठीक करता है।

यहां के ग्रामीणों ने इस कुँए के कई किस्सें बताते है. यह कुआं मुगलकालीन है और सैकड़ों वर्ष पुराना है. यह साक सम्वत 1634 ईस्वी में इस कुआं का निर्माण तत्कालीन चंदेल वंश के राजा गौरनारायन सिंह ने करवाया था. यह बिहार का सबसे बड़ा कुआं के रूप में जाना जाता है. वर्षों पहले जब कुआं की सफाई हुई तो राधा कृष्ण और लड्डू गोपाल की प्रतिमा समेत कई छोटी छोटी तांबे की प्रतिमा निकली थी. इसके पानी की खासियत यह है कि इससे घेघा( ग्वाईटर) रोग खत्म हो जाता है. पानी में आयोडीन की मात्रा होने से यह रोग खत्म होता है. यहाँ भागलपुर,खगड़िया, बांका समेत आसपास के जिले के लोग पहुंचते है और इसके पानी का सेवन करते हैं।

सात रंग में पानी बदलता था, पानी कभी सुखा नहीं

पूर्व में इस कुआं में सात रंग में पानी बदलता था और सबसे खास बात यह है की सैकड़ों वर्ष इस पुराने कुआं का पानी कभी नहीं सूखा. इतना ही नहीं बल्कि जब 1934 में भूकम्प आया और भीषण तबाही मचाई तब भी कुआं को नुकसान नहीं हुआ. वर्षों से तारणहार की बाट जोह रहे इस कुआं का जीर्णोद्धार कार्य कराया जा रहा है.वहीं ग्रामीण अमर सिंह ने बताया कि यह कुआँ लाल किला से भी पुराना है. लाल किला 1638 में बना है लेकिन यह 1634 का कुआँ है. यह भी कहा जाता है कि तत्कालीन राजा इसमें सोने की नाव चलाते थे।

जिलाधिकारी ने दिया यह आदेश

जिलाधिकारी सुब्रत सेन ने भी कुआं को देख कहा यह हमलोगों का धरोहर है. उन्होंने इसके पौराणिक इतिहास इसकी गोलाई, चौड़ाई और गहराई देख चौंक गए और इसके कायल हो गए. उन्होंने अधीनस्थ अधिकारियों को यहाँ बेहतर साजो सजावट, लाइटिंग के निर्देश दिए. ताकि जो लोग पहुंचे वो आकर्षित हो और इसकी महत्वता बरकरार रहे. ग्रामीण बताते है कि जब चापाकल नहीं हुआ करता था, तब इस कुआं पर पूरे गाँव व आसपास के गांवों के लोग यहां से पानी भरकर जाते थे।


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