बिहार में बदहाल स्कूल-कॉलेजों की ख़बर तो आती रहती है. लेकिन अब रेलवे स्टेशन भी एक्सपायर होते जा रहे हैं. बिहार के मधेपुरा जिले में स्थित मिठाई रेलवे स्टेशन में पिछले 6 महीने से एक भी टिकट नहीं बिका. ये स्टेशन आजादी के समय बना था, लेकिन आज यहां कचरे का ढेर लगा है. स्टेशन का टेंडर 6 महीने पहले ही खत्म हो चुका है. अब इस स्टेशन पर कोई कर्मचारी काम नहीं करता है. यात्रियों के लिए पानी और बिजली जैसी आधारभूत सुविधा नहीं है. लोग बिना टिकट के सफर करने को मजबूर हैं.
मिठाई स्टेशन मधेपुरा जिला मुख्यालय में स्थित है. इसे 1947 में चालू किया गया था. किसी और देश में ये हेरिटेज की कैटेगरी में चला गया होता. लेकिन सुविधाएं तो छोड़िए सालों तक इस स्टेशन को सिग्नल जैसी जरूरी सुविधा भी नसीब नहीं थी. आगे चलकर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के चलते छोटे स्टेशनों के रख रखाव का काम निजी हाथों में दिया गया तो मिठाई स्टेशन भी इसी लिस्ट में आ गया. बाद में निजीकरण के चलते यहां सिग्नल की सुविधा आई. लेकिन बड़ी लाइन बनने के बाद ये हॉल्ट में तब्दील हो गया. अब यहां से केवल लोकल ट्रेनें गुजरती हैं. समय के साथ मधेपुरा की आबादी बढ़ी, यात्री भी बढ़े. हर दिन यहां से सैकड़ों लोग सफर करने लगे. लेकिन अब वे बिना टिकट के सफर करते हैं.
यहां सैकड़ों यात्रियों को न बैठने की सुविधा मिलती है, न ही बिजली की, और न ही साफ पानी की. यहां हैंडपंप की 4 पाइपें जरूर नजर आती हैं, लेकिन हैंड पंप नदारद है. यूं तो देश के कई अच्छे स्टेशनों पर भी साफ शौचालय मिलना मुश्किल है. लिहाजा मिठाई स्टेशन पर बनेे शौचालय से क्या ही उम्मीद की जा सकती है. बैठने की जगह बनाई गई थी. लेकिन वहां गंदगी के चलते बैठने की सोची भी नहीं जा सकती. स्टेशन पर शेड न होने की वजह से यात्री कभी कड़ी धूप तो कभी तेज बरसात में खड़े खड़े ही ट्रेन का इंतज़ार करते हैं.
टिकट न मिलने से राजस्व नुकसान
बेटिकट सफर करना जुर्म हैै. मगर आप मधेपुरा के इस स्टेशन पर ट्रेन पकड़ रहे हैं तो चाहकर भी टिकट नहीं खरीद सकते. खरीदेंगे भी कैसे, यहां की टिकट खिड़की तो ना जाने कब से बंद पड़ी है. ऐसे में अपनी तकदीर के सहारे ही मुसाफिर ट्रेनों में चढ़ते और चलते हैं. किस्मत ने धोखा दिया नहीं कि बेटिकट यात्रा करते पकड़े गए. फिर लाख दलील देते रहिए, जुर्माना तो देना ही पड़ेगा.