आरा से आरके सिंह और काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा को शिकस्त देकर माले ने बड़ी जीत दर्ज की। हालांकि, बेगूसराय से भाकपा के अवधेश राय और खगड़िया से माकपा के संजय कुमार को कामयाबी नहीं मिली। बावजूद इसके माले के प्रदर्शन ने करीब ढाई दशक बाद लोकसभा चुनाव में बिहार में वामदलों का सूखा खत्म किया।
इस चुनाव में वामदलों ने कुल पांच सीटों पर उम्मीदवार उतारे, इसमें से दो पर जीत मिली। आरा और काराकाट में माले का तीन तारा खूब चमका। नालंदा में माले प्रत्याशी संदीप सौरभ को जदयू प्रत्याशी कौशलेंद्र कुमार से हार का सामना करना पड़ा। अगियांव विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी प्रत्याशी जीते। आरा में भाकपा माले के सुदामा प्रसाद ने भाजपा के आरके सिंह और काराकाट में भाकपा माले के ही राजाराम सिंह ने पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा को हराया। माले ने काराकाट सीट पर पहली बार कब्जा किया है। काराकाट सीट 2009 में अस्तित्व में आई। तब से अब तक हुए तीन चुनावों में इस सीट पर एनडीए प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं। इस बार जीते राजाराम सिंह यहां पार्टी प्रत्याशी के रूप में हार मिलती रही थी। इस बार इंडिया गठबंधन का साथ पाकर माले ने एनडीए से यह सीट छीन ली। आरा सीट पर माले को वर्ष 1989 के बाद कामयाबी मिली है। तब आईपीएफ के बैनर तले उतरे पार्टी के रामेश्वर प्रसाद को जीत मिली थी। यानी आरा सीट पर 35 साल बाद माले को कामयाबी मिली। वामदलों का वोट प्रतिशत पिछले कुछ चुनावों में तीन से चार प्रतिशत के बीच ही रहा है। इस बार वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। बिहार में वामदलों को इससे पहले वर्ष 1996 तथा उसके बाद 1999 में कामयाबी मिली थी। 1996 में बलिया सीट से शत्रुघ्न प्रसाद सिंह तथा 1999 में भागलपुर सीट से माकपा के सुबोध राय चुनाव जीते थे।
पिछली बार शून्य पर हुए थे आउट
वर्ष 2019 चुनाव में वामदल शून्य पर आउट हुए थे। पिछली बार राजद के समर्थन से भाकपा (माले) ने आरा लोकसभा सीट पर उम्मीदवार उतारा था, लेकिन भाजपा ने माले को करारी शिकस्त दी थी। माले जहानाबाद, काराकट और सीवान में अकेले चुनाव लड़ा, जहां उसे हार मिली थी। भाकपा अपनी परंपरागत सीट बेगूसराय में अकेले बूते चुनाव लड़कर हार गई थी। माकपा उजियारपुर में हारी थी।