बुढ़िया काली रही टोला डिमाहा वैष्णवी काली मंदिर मे बंगाली तांत्रिक पद्धति से होती है पूजा

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बुढ़िया काली रही टोला डिमाहा वैष्णवी काली मंदिर मे बंगाली तांत्रिक पद्धति से होती है पूजा

परंपरा संध्या आरती और विसर्जन में शामिल होते हैं गांव के दमाद और बेटियां

भागलपुर गोपालपुर प्रखंड के अंतर्गत गंगातट वाली रही टोला डीमाहा वैष्णवी काली मंदिर का इतिहास अति प्राचीन रहा है । लगभग 200 वर्षों से मां की पूजा हो रही है। यहाँ तांत्रिक और बंगाली पद्धति से मां की पूजा की जाती है । रही टोला डिमाहा में परंपरा के अनुसार प्रतिमा विसर्जन में गांव की बेटी और दामाद बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि कई वर्ष पूर्व माता के फूस का मंदिर दियारा क्षेत्र में था ।गंगा के भीषण कटाव के कारण लगभग 74 साल पहले माता की मंदिर की स्थापना रही टोला डिमाहा गांव में किया गया।मंदिर पहले फुश और छोटा थाl कुछ वर्ष पूर्व यहां फुश का मंदिर हटा कर छत नुमा मंदिर बनाया गया है ।ग्रामीण राजीव कुमार ने बताया कि यह मंदिर बहुत ही पुराना है l इसी माता के मंदिर से पास के गांव दो गावों में यही कि प्रसाद को लेकर के डीमहा दियारा में माता कि स्थापना किया गया है और गोढ़ियारी में भी यहीं का तख्ता लेकर के माता का स्थापना करके पूजा अर्चना किया जाता हैl इन बुढ़िया माता कि महिमा आईसा है कि ग्रामीण बताते है कि जब छेत्र में हैजा जैसी महामारी से ग्रामीण जूझ रही थी कि तभी माता के यहां सात दिन पूजा अर्चना करने के बाद हैजा, यहां से ख़त्म हुआ थाl

इस मंदिर के पंडित ने बताया कि वैष्णवी काली मंदिर है। यहां पर बलि की प्रथा नहीं है। वैष्णवी काली मंदिर बहुत ही शक्तिशाली है। माता की सभी स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। वही गांव के लोगों ने बताया कि यहां मांगलिक कार्य करने से पूर्व मैया की चौखट पर शीश नवा कर ही जाते हैं ।समिति के राजीव कुमार ने बताया कि भव्य पूजा के साथ मेले का भी आयोजन किया जाता है ।ग्रामीणों के सहयोग से भजन कीर्तन का कार्यक्रम होता है। ऐसी मान्यता है कि मैया की चौखट पर आने के बाद माता भक्तों की सभी विघ्नों को दूर कर मनोकामनाएं पूर्ण करती है।

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