ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में नाम, मुख्तार अंसारी को मारने की सुपारी, पत्रकार को हत्या की धमकी, AK 47 मामला…. जानिए भाजपा को क्यों पसंद आए ‘बाहुबली’ सुनील पांडेय

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बिहार में बाहुबलियों और सियासी दलों का याराना कोई नया नहीं रहा है. ऐसे में रविवार को जब कई मामलों में आरोपी रहे पूर्व विधायक सुनील पांडेय ने भाजपा का दामन थामा तो सियासत और बाहुबल के याराना की पुरानी कहानी नये रूप में सामने आई. साल 2000 में सुनील पांडेय ने तरारी विधानसभा से समता पार्टी से चुनाव लड़कर पहली बार विधायक बनने का सफर तय किया. बाद में वे चार बार तरारी से विधायक रहे. लेकिन सुनील पांडेय की असली पहचान उनके बाहुबली छवि से रही. भोजपुर का इलाका नहीं बल्कि बिहार से उत्तर प्रदेश तक सुनील पांडेय की तूती पिछले करीब तीन दशक से बोल रही है. इस दौरान कई तरह के जघन्य अपराध से जुड़े मामलों में उनका नाम भी आया. इसमें रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में आया उनका नाम हो या उत्तर प्रदेश के माफिया मुख्तार अंसारी को मारने की सुपारी देने से जुड़ा मामला हो या फिर पत्रकार को जान से मारने की धमकी देना हो. ऐसे कई मामले रहे जिसने सुनील पांडेय को जराइम की दुनिया का चर्चित चेहरा बना दिया.

कैसे बढ़ा सुनील का कद: बालू कारोबारी कमलेशी पांडेय अपने पुत्र सुनील पांडेय को इंजीनियर बनाना चाहते थे. वर्ष 1990 के दशक में सुनील पांडेय को इंजीनियरिंग करने बेंगलूरू भेजा गया लेकिन वहां हुए एक झगड़े में सुनील पर चाकूबाजी का आरोप लगा. इसके बाद सुनील की वापसी फिर से रोहतास हो गई. यहां से हुई शुरुआत फिर तो अपराध के कई पन्नों में लिखा जाने लगा. कहा जाता है कि बालू कारोबार के सिलसिले में ही सुनील की दोस्ती लालू यादव के खास रहे सीवान के सांसद शहाबुद्दीन के करीबी सल्लू मियां से हुई. बालू के ठेके और सरकारी टेंडरों में सिल्लू का सिक्का चलता था. लेकिन सुनील और सल्लू कुछ दिनों में ही अलग हो गए क्योंकि दोनों को इसी क्षेत्र में दबंगई कायम करनी थी. इतना ही नहीं कुछ समय बाद जब सल्लू मियां की हत्या हुई तो उसमें भी सुनील पांडेय का नाम आया. हालांकि सुनील के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला.

ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या : सुनील पांडेय के खिलाफ हर बीतते वर्ष के साथ नये आपराधिक मामले दर्ज होते गए. इसमें बालू कारोबार को लेकर वर्चस्व की जंग में हुए मामले हों या फिर अपहरण जैसे वारदात. साल 2003 में पटना के नामी न्यूरो सर्जन रमेश चंद्रा का अपहरण हुआ और फिरौती में 50 लाख मांगे गए. पुलिस ने डॉक्टर को सही सलामत ढूंढ निकाला और विधायक सुनील पांडेय का नाम सामने आया. मामला बढ़ा तो 2008 में विधायक समेत तीन को उम्रकैद हुई लेकिन हाईकोर्ट ने बाद में पांडेय को बरी कर दिया. इस बीच वर्ष 2006 में ऑन कैमरा पत्रकार को जान से मारने की धमकी के चलते नीतीश कुमार ने सुनील पांडेय को जदयू से बाहर निकाल दिया. एक दौर में रणवीर सेना के सदस्य माने जाने वाले सुनील पांडेय का नाम वर्ष 2012 में ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में भी आया.

यूपी तक फैला साम्राज्य : उत्तर प्रदेश के माफिया मुख्तार अंसारी को मारने के लिए भी 50 लाख की सुपारी दी थी. आरोपी लंबू के इकबालिया बयान के बाद सुनील पांडेय को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. इसी लंबू सिंह को आरा कोर्ट बम ब्लास्ट में फांसी की सजा सुनाई गई है. 2015 में हुए इस बमकांड में दो लोगों की मौत हो गई थी. इसी तरह मुंगेर में मिले करीब 20 एके-47 रायफल मामले में भी संदेह की सुई सुनील पांडेय की ओर गई. लेकिन सुनील पांडेय का इतिहास यहीं तक नहीं है.  उनके चुनावी हलफनामे यह बताने को काफी हैं कि उनके खिलाफ दर्जनों मामले दर्ज हैं. साथ ही अलग अलग मामलों में वे जेल भी जाते रहे हैं.

सियासत में एंट्री : वर्ष 2000 में पहली बार समता पार्टी के टिकट पर तरारी से विधायक बने सुनील पांडेय चार बार विधायक रह चुके हैं. भूमिहार जाति से आने वाले सुनील पांडेय की दबंग छवि इस इलाके में उनकी मजबूत पकड़ को दर्शाती है. वर्ष 2020 के चुनाव में सुनील पांडेय निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतरे और मात्र 13 हजार वोटों के अंतर से सीपीआई (एमएल) एल के सुदामा प्रसाद से हार गए. अब तरारी में इसी वर्ष के अंत तक विधानसभा उपचुनाव होना है. ऐसे में सुनील पांडेय के सहारे भाजपा तरारी में कमल खिलाने की तैयारी में है. बाहुबली छवि वाले नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ़ सुनील पांडेय अब भाजपा की नैया पार लगायेंगे.