उत्तरवाहिनी अजगैवीनाथ धाम का गंगा जल त्रिदोष नाशक व पापनाशिनी है। पंडितों के अनुसार कई शास्त्रत्तें में भी इसका उल्लेख है। गंगाजल मंदाग्निदोष नाशक, क्षुधा वर्धक और त्रिदोष नाशक है। ऐसी मान्यता है कि कफ, पित्त, वायु और रक्त विकारों से रोग की उत्पत्ति होती है और गंगा का जल इन विकारों को दूर करता है। चूंकि गंगाजल त्रिदोष नाशक है इसलिए इसके सेवन से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि गंगा को व्याधिहारिणी भी कहा जाता है।
गंगाजल को अन्य जल की अपेक्षा अधिक पवित्र और अमृत तुल्य माना गया है। इस जल का गुण है कि इसे किसी पात्र में चिरकाल तक रखने पर भी यह बिल्कुल विकृत नहीं होता। इस जल में रोगानुओं को नष्ट करने की विशिष्ट क्षमता है। पंडित संजीव झा बताते हैं कि निरंतर इसके पान करते रहने तथा इसके स्वच्छ जल में स्नान करने से कई प्रकार के असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। गंगाजल रजोगुण और तमोगुण का नाश कर सतोगुण बढ़ाता है। यही कारण है कि गंगाजल को अमृत कहा गया है। ऐसा मानना है कि गंगा तट की मिट्टी और हवा भी स्वास्थ्यवर्धक होती है। चिकित्सक डॉ. राजेंद्र प्रसाद मोदी कहते हैं जब कोई व्यक्ति असाध्य रोग से ग्रसित रहते हैं और चिकित्सकों की औषधियों से रोग मुक्त नहीं हो पाते तो ऐसी दशा में गंगा तट का सेवन करने से रोग मुक्त हो जाते हैं।