भागलपुर : अपने पालतू कुत्ते से इतना प्यार हुआ की मौत के बाद पूरे विधि विधान से कराया पूजा पाठ
- अपने पालतू कुत्ते से इतना प्यार हुआ कि कुत्ते की मौत के बाद पूरे विधि विधान से कराया घरों में पूजा पाठ
- अपने कुत्ते की याद में हाथों में बनवाया टैटू
भागलपुर : इंसान और जानवर के बीच के रिश्ते की कहानी हमेशा से चर्चा में रही है पौराणिक कथाओं से लेकर ऐतिहासिक कहानी में ऐसे रिश्ते की चर्चा मिलती है ।भागलपुर के मोहदीनगर में भी एक ऐसा ही अनूठा उदाहरण देखने को मिला भागलपुर के मोहदीनगर इलाके के रहने वाले रत्नेश कुमार एवं उनकी पुत्री तमन्ना ने अपने पालतू कुत्ते की मौत के बाद उसे इंसानों की तरह न सिर्फ अंतिम विदाई दी बल्कि पूरे विधि विधान से उसकी आत्मा की शांति के लिए घर पर पूजा पाठ भी कराया ।
रत्नेश ने बताया कि उन्हें अपने कुत्ते से बहुत लगाव था वह उनके परिवार के ही सदस्य की तरह था उन्होंने कहा कि उनके पालतू कुत्ता का नाम फुशी था जब तक जीवित रहा उसने पूरे वफादारी से उनके साथ निभाया वह उसे कोविड के समय अपने घर लेकर आए थे उस समय उसका आयु दो महीना था। आगे रत्नेश ने कहा कि जब फुशी का मौत हुआ तब घर में मातम छा गया फुशी का मौत से पूरे परिवार सदमा में हैं ।रत्नेश इतना कहते कहते भावुक हो जा रहे थे।अब रत्नेश को सड़क पर घूम रहे आवारा कुत्ता से गहरा लगाव हो गया है जब भी रत्नेश घर से निकलता है तो 20 25 कुत्ते का झुंड रत्नेश के पीछे पड़ जाता है उसके बाद रत्नेश सभी कुत्ते को बिस्कुट खिलाता है और सभी कुत्ते को अपने घर ले आता है। रत्नेश की पुत्री तमन्ना जो कि हरियाणा के सोनीपत में फैशन डिजाइनर है उसे तो फुशी से इतना लगाव हो गया था की फुशी के मौत के बाद तमन्ना ने अपने हाथ पर फुशी के चित्र की टैटू भी बनवा रखी है।
तमन्ना ने कहा कि फूशी के मौत का कारण बीमारी रहा जब हमें पापा से पता चला कि फुशी का तबीयत ज्यादा बिगड़ गया है तो आनन फानन में हरियाणा से भागलपुर पहुंची उसके बाद बेहतर इलाज के लिए फुशी को ट्रेन से पटना लेकर गई और पटना में इलाज कराया काफी खर्च करने के बाद भी फुशी हमारे बीच नहीं रहा इसके बाद तो मानो जैसा गम का पहाड़ ही हमारे परिवार के ऊपर टूट पड़ा हम अपने पापा से भी ज्यादा प्यार फुशी से करते थे इसलिए हर साल फुशी का जन्मदिन पर घर आते थे और शहर के बड़े-बड़े होटलों में फुशी का जन्मदिन मनाते थे।
तमन्ना ने यह भी कहा जब हम हरियाणा से आते थे उसके बाद हम जहां भी जाते थे। फुशी हमारे साथ ही जाता था।इसीलिए अब फुशी का जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता है।
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