भागलपुर : महर्षि मेंहीं परमहंस की जयंती आज , देश-विदेश से पहुंचे अनुयायी

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भागलपुर : महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज की 140वीं जयंती बुधवार को कुप्पाघाट आश्रम में मनाई जायेगी। जयंती में भाग लेने के लिए देश-विदेश से 15 सौ से अधिक अनुयायी मंगलवार को आश्रम पहुंच चुके हैं।

अनुयायी नेपाल, दिल्ली, हरिद्वार, कोलकाता, पटना, रांची, बोकारो, धनबाद, पूर्णिया आदि जगहों से पहुंचे हैं। कुप्पाघाट आश्रम के स्वामी पंकज दास ने बताया कि इस बार सद्गुरु परमहंस जी महाराज की 140वीं जयंती 22 मई को मनायी जा रही है। इसकी तैयारी संतमत सत्संग महासभा की ओर से पूरी कर ली गई है। श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला मंगलवार देर रात तक जारी रहा। पंकज दास ने बताया कि जयंती समारोह पर महर्षि मेंहीं आश्रम कुप्पाघाट भागलपुर में ब्रह्म मुहूर्त में 3 से 4 ध्यान और सुबह 5 बजे प्रभातफेरी निकाली जाएगी। इसके बाद 730 बजे सत्संग, पुष्पांजलि 8 बजे व 11 बजे भंडारा होगा। दोपहर दो बजे सत्संग हॉल में गुरु महाराज की पावन जयंती पर संतों द्वारा उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला जाएगा। उन्होंने बताया कि शोभायात्रा सुबह पांच बजे आश्रम से निकलेगी। शोभायात्रा कुप्पाघाट से तिलकामांझी, कचहरी चौक, घंटाघर, खलीफाबाग चौक, कोतवाली चौक, दीपनगर चौक, बूढ़ानाथ चौक, आदमपुर चौक, खंजरपुर मायागंज अस्पताल होते हुए कुप्पाघाट आश्रम पहुंचेगी। महामंत्री दिव्य प्रकाश, मंत्री मनु भास्कर, स्वामी रमेश बाबा, संजय बाबा, अमित कुमार, सूरज कुमार आदि लगे हुए हैं।

खोखसी में नाना के घर हुआ था जन्म सद्गुरु ब्रह्मर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का अवतरण विक्रम संवत 1642 के वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के उदाकिशुनगंज थाने के खोखसी-श्याम (मझुआ) नामक गांव में अपने नाना के घर हुआ था।

जन्म से ही इनके सिर में सात जटाएं थीं। ज्योतिषी ने इनका जन्म राशि का नाम रामानुग्रहलाल दास रखा। बाद में इनके पिता के चाचा भरतलाल दासजी ने इनका नाम बदलकर ‘मेंहीं लाल’ रख दिया। पांच वर्ष की अवस्था में मुण्डन संस्कार होने के बाद अपने गांव की ही पाठशाला में इनकी प्रारंभिक शिक्षा शुरू हुई, जिसमें इन्होंने कैथी लिपि के साथ-साथ देवनागरी लिपि भी सीखी।

महर्षि मेंही परमहंस, एक प्रमुख संत और आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने संतमत (Sant Mat) के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने ध्यान और साधना के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार पर जोर दिया। उनकी जयंती उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है जो उनके शिक्षाओं और जीवन से प्रेरित हैं। महर्षि मेंही परमहंस की जयंती मनाने के लिए निम्नलिखित कार्य किए जा सकते हैं:

 

  1. प्रवचन और सत्संग: महर्षि मेंही परमहंस की शिक्षाओं और उपदेशों पर आधारित प्रवचन और सत्संग आयोजित किए जा सकते हैं। इसमें उनके जीवन, शिक्षाएं और साधना के महत्व पर चर्चा की जा सकती है।

 

  1. ध्यान और साधना: इस दिन को ध्यान और साधना में समर्पित करना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके अनुयायी इस दिन विशेष ध्यान सत्र आयोजित कर सकते हैं।

 

  1. पुस्तकों का पठन: महर्षि मेंही परमहंस द्वारा लिखी गई पुस्तकों और लेखों का पठन कर सकते हैं। इससे उनकी गहन आध्यात्मिक शिक्षाओं को और अधिक समझा जा सकता है।

 

  1. सेवा कार्य: समाज सेवा और जरूरतमंदों की सहायता करना भी उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक तरीका हो सकता है। इससे उनके सेवा और प्रेम के संदेश को आगे बढ़ाया जा सकता है।

 

  1. सांस्कृतिक कार्यक्रम: उनके जीवन और शिक्षाओं पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं, जिसमें भजन, कीर्तन और अन्य धार्मिक गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं।

 

महर्षि मेंही परमहंस की जयंती उनके अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन उनके द्वारा दिए गए ज्ञान और मार्गदर्शन को याद करके उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करने का संकल्प लिया जा सकता है।

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