कोतवाली थाना क्षेत्र के गुरुद्वारा रोड के रहने वाले पवन कुमार सिंह गुंडा बैंक संचालित करने वाले शख्स की शिकायत लेकर बुधवार को एसएसपी कार्यालय पहुंचे।
वर्तमान में तातारपुर थाना क्षेत्र में किराए के मकान में रहने वाले पवन ने बताया कि वह कोयला के थोक व्यापार करते हैं। उनका कहना है कि उन्होंने 11 लाख रुपये एक शख्स से कर्ज लिया था। प्रत्येक महीने सूद का पैसा भी दे रहे थे। बाद में सूद और मूल का पैसा देकर स्टांप पेपर वापस ले लिया। बाद में पता चला कि उनका चेक बाउंस करा दिया गया और उनसे संपत्ति लिखवाने की साजिश होने लगी।
गुंडा बैंक यानी वो बैंक, जो बिहार में किसी निजी और सरकारी बैंक की तरह ही ज़रूरतमंदों को कर्ज़ देते हैं। लेकिन, ऊंची ब्याज़ दर पर दिए जाने वाले इस कर्ज़ की वसूली दूसरे बैंकों जैसी नहीं होती। मारपीट, अपहरण, सिरिंज से खून निकाल लेना, प्रॉपर्टी जबरन अपने नाम करा लेना – कुछ इन तौर-तरीकों से अपना पैसा निकलवाते हैं गुंडा बैंक।
इन बैंकों की दहशत को इसी बात से समझा जा सकता है कि शुरुआती दौर में बिहार के ग्रामीण इलाके़ में लोग इन बैंकों को ‘अन्हरा यानी अंधा बैंक’ कहते थे। आसान शब्दों में कहें, ऐसे बैंक जो अंधे क़ानून पर चलते हैं। ऐक्टर बॉबी देओल की फिल्म ‘क्रांति’ का एक डायलॉग बेहद मशहूर है, ‘नो एफआईआर, नो अरेस्ट… फैसला ऑन द स्पॉट’। इसी तर्ज पर काम करते हैं गुंडा बैंक।
बिहार में गुंडा बैंक की शुरुआत हुई 90 के दशक के शुरुआती बरस में। तब राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था तेज़ी से चरमरा रही थी। एक आम बिहारी रोजी-रोटी चलाने के तरीके तलाश रहा था। इसी बीच राज्य के भागलपुर के तीनटंगा दियारा इलाके़ में कुछ नया घटा। यहां सिकंदर मंडल नाम के एक मुखिया ने लोगों की कर्ज़ की ज़रूरत को भांप लिया था। दियारा इलाक़े में बैंक तो थे नहीं। ऐसे में सिकंदर ने 10-12 नौजवानों के साथ एक बैंक ही शुरू कर दिया।
बैंक शुरू करने के लिए इन लोगों ने पहले आपसी सहयोग से ही कुछ रकम जमा की। फिर मामूली ब्याज़ दर पर यह रकम आसपास के इलाक़ों के ज़रूरतमंदों को देनी शुरू कर दी। बाकायदा किसी निजी और सरकारी बैंक की तरह ही इन बैंकों से तय ब्याज़ दर पर कर्ज़ मिलता। बिना किसी सरकारी लाइसेंस के चलने वाला यह बैंक थोड़े दिनों में ही सफल हो गया।