वट सावित्री पूजा छह जून को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। पंडित सौरभ कुमार मिश्रा ने बताया कि इस व्रत को रखने से परिवार के लोगों को सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है। इस दिन सुहागिनें वटवृक्ष की पूजा करती है। पूजा के दौरान बरगद के पेड़ के नीचे कथा सुनती हैं।
वट सावित्री पूजा एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जिसे मुख्यतः विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए करती हैं। यह पूजा ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं और सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा का स्मरण करती हैं।
पूजा की विधि:
- स्नान और तैयारी: सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
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पूजा की सामग्री: सिंदूर, हल्दी, अक्षत, पान के पत्ते, कुमकुम, फूल, धूप, दीपक, फल, मिठाई, और जल से भरा कलश रखें।
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वट वृक्ष की पूजा: वट वृक्ष के चारों ओर धागा लपेटते हुए परिक्रमा करें और वृक्ष की जड़ों में जल चढ़ाएं।
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सावित्री-सत्यवान कथा: सावित्री और सत्यवान की कथा का वाचन करें।
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व्रत: दिनभर व्रत रखें और शाम को पूजा के बाद भोजन ग्रहण करें।
सावित्री और सत्यवान की कथा में, सावित्री अपने पति सत्यवान के अल्पायु होने की भविष्यवाणी जानकर कठोर तपस्या करती है और अपनी भक्ति व शक्ति से यमराज से अपने पति के प्राण वापस लाती है। इस कथा के माध्यम से महिलाओं में अपने पति के प्रति निष्ठा और प्रेम का प्रतीक बनता है।
वट सावित्री पूजा उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्य प्रदेश में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है।