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भारत और चीन शीघ्र सुलझाएंगे विवाद

ByKumar Aditya

जुलाई 5, 2024
IND china scaled

भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर तनाव कम करने के लिए निकट भविष्य में जल्दी-जल्दी बैठकें करने पर सहमत हो गए हैं। विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को जारी बयान में कहा, कजाखस्तान के अस्ताना में एससीओ शिखर सम्मलेन से इतर दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच इस मुद्दे पर चर्चा हुई। मंत्रालय ने बताया कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की।

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी इस बात पर सहमत हुए कि सीमावर्ती क्षेत्रों में मौजूदा स्थिति का लंबा खिंचना किसी भी पक्ष के हित में नहीं है। दोनों मंत्री एलएसी से जुड़े शेष मुद्दों को जल्द हल करने के लिए अपनी चर्चाओं को आगे बढ़ाने के लिए दोनों पक्षों के राजनयिक और सैन्य अधिकारियों की बैठकें जल्द करने पर सहमत हुए।

इस बात पर भी सहमति बनी कि परामर्श और समन्वय पर कार्य तंत्र को शीघ्र बैठक आयोजित करनी चाहिए। विदेश मंत्री ने दोहराया कि आपसी सम्मान, संवेदनशीलता और एक दूसरे के हितों को ध्यान में रखने से ही संबंध बेहतर होते हैं। विदेश मंत्री ने सामान्य स्थिति की दिशा में बाधाओं को दूर करने के लिए पूर्वी लद्दाख के शेष क्षेत्रों से सेनाओं की पूर्ण वापसी और सीमा पर शांति बहाल करने के प्रयासों को दोगुना करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। दोनों मंत्रियों ने कहा कि अतीत में दोनों सरकारों में हुए द्विपक्षीय समझौतों, प्रोटोकॉल और एलएसी का सम्मान किया जाना चाहिए।

दो बिंदुओं पर दोनों देशों में गतिरोध कायम 

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में उत्पन्न तनाव के बाद दो बिंदुओं पर अब भी तनातनी है, जबकि भारत की तरफ से मई 2020 से पहले की स्थिति बहाली के लिए लगातार कहा जा रहा है। दोनों देशों के बीच शीर्ष सैन्य कमांडर स्तर की 21 वार्ताएं हो चुकी हैं। पिछली बैठक फरवरी में हुई थी।

सीमापार आतंकवाद पर निर्णायक कार्रवाई हो’

एससीओ शिखर सम्मेलन में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश पढ़ते हुए कहा कि आतंकवाद का इस्तेमाल राष्ट्रों द्वारा अस्थिरता के साधन के रूप में जारी है। मोदी ने एससीओ सदस्यों से कहा कि सीमा पार आतंकवाद का निर्णायक जवाब देने की आवश्यकता है। भारत क्षमता निर्माण में अन्य देशों, विशेषकर वैश्विक दक्षिण देशों के साथ साझेदारी को तैयार है। नए संपर्क संबंधों में राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए।