‘माइंड ट्रेनिंग की कमी’, प्रकाश पादुकोण ने बताया लक्ष्य सेन समेत भारत के अन्य बैडमिंटन खिलाड़ियों की हार का कारण

202408053199971

भारत के लक्ष्य सेन पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक मैच में मलेशिया के ली ज़ी जिया के खिलाफ हार गए। 71 मिनट तक चले इस कड़े मुकाबले में लक्ष्य 21-13, 16-21, 11-21 से हार गए। इसके साथ ही पेरिस ओलंपिक में भारत का बैडमिंटन अभियान बिना किसी मेडल के समाप्त हो गया।

भारत के बैडमिंटन कोच प्रकाश पादुकोण ने ओलंपिक में भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों के निराशाजनक अभियान पर बात की। उन्होंने लक्ष्य सेन के ताजा मुकाबले पर बात करते हुए कहा, “लक्ष्य सेन अच्छा खेले हैं। लेकिन उनकी हार से निराशा है। रविवार को भी वह फिनिश नहीं कर पाए थे। कांस्य पदक मैच में भी उन्होंने पहला गेम जीता और दूसरे गेम में 8-3 से आगे रहे।”

उन्होंने आगे बताया, “लक्ष्य को हवा के साथ खेलने में हमेशा दिक्कत रही है। बैडमिंटन में आमतौर पर भारतीय खिलाड़ी हवा के खिलाफ खेलने में ज्यादा सहज रहते हैं। दूसरे गेम में 8-3 से आगे होने के बाद अगर लक्ष्य दो-तीन पॉइंट और ले लेते, तो इससे खेल बदल जाता। लक्ष्य के दिमाग में कहीं न कहीं हवा के साथ खेलने की बात हावी थी, जिसने विपक्षी खिलाड़ी को आत्मविश्वास दिया। हमें हवा के साथ खेलने के प्रति भारतीय खिलाड़ियों की असहजता पर काम करना होगा।”

प्रकाश पादुकोण ने ओलंपिक में खिलाड़ियों के ‘माइंडसेट’ को विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अब वह समय आ गया है, जब ओलंपिक की तैयारी कर रहे खिलाड़ियों के लिए खेल मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति की जाए।

उन्होंने कहा, “बैडमिंटन में एक भी मेडल नहीं आने से निराश हूं। हम बैडमिंटन में तीन पदक के दावेदार थे, एक भी मेडल आता तो खुशी होती। ओलंपिक में खिलाड़ियों के लिए सरकार, साई, खेल मंत्रालय, आदि ने अपनी ओर से सब कुछ किया है। जो भी खिलाड़ियों की ओर से मांग और सपोर्ट की दरकार थी, वह पूरी की गई। अब खिलाड़ियों को भी जिम्मेदारी लेनी होगी।”

उन्होंने कहा, “हमें माइंड ट्रेनिंग पर ध्यान देना होगा। सिर्फ बैडमिंटन ही नहीं, बल्कि अन्य खेलों में भी माइंड ट्रेनिंग जरूरी है। ओलंपिक में खिलाड़ियों के ऊपर काफी दबाव होता है। भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी ओलंपिक में तकनीक, फिटनेस बाकी सब चीजों में सही थे, लेकिन वह दबाव नहीं झेल सके। इसके लिए योग, ध्यान जैसी चीजें लानी होंगी। यही वजह है कि मनु भाकर इस बार पदक के लिए फेवरेट न होने के बावजूद जीत गईं।”

“हमने पिछले ओलंपिक में भी यही देखा है, जो मेडल के लिए फेवरेट नहीं होता, वह पदक जीत लेता है। क्योंकि उसके ऊपर मानसिक दबाव नहीं होता। इस वक्त हमारे पास विदेशी कोच, ट्रेनर और फिजियो सब मौजूद हैं, लेकिन अब एक विदेशी खेल मनोवैज्ञानिक भी होना चाहिए। हमें अगले ओलंपिक को ध्यान में रखते हुए इसके लिए अभी से तैयारी करनी होगी। माइंड ट्रेनिंग ओलंपिक से सिर्फ तीन महीने पहले शुरू नहीं की जा सकती।”

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.