मुंगेर के ऋतुराज बने असिस्टेंट कमांडेंट, UPSC CAPF में लाया 136वां स्थान

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मुंगेर के लाल ने जिले का नाम रोशन किया है। मुंगेर सदर प्रखंड के मय दरियापुर निवासी अरूण कुमार शांडिल्य उर्फ गुड्डू के पुत्र ऋतुराज ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा आयोजित सेंट्रल आर्म्ड फोर्स की परीक्षा में 136 वां रैंक हासिल कर असिस्टेंट कमांडेंट बन गये हैं। ऋतुराज की इस सफलता से परिजन काफी खुश हैं।

कौन कहता है कि आसमा में छेद नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों..इसी कहावत और अपने पिता के सपनों को साकार कर दिखाया है मुंगेर सदर प्रखंड के मय दरियापुर निवासी अरूण कुमार शांडिल्य उर्फ गुड्डू के पुत्र ऋतुराज ने। जिसने अपने पिता के सपने को सेंट्रल आर्म्ड फोर्स में असिस्टेंट कमांडेंट बनकर पूरा किया है। ऋतुराज ने संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सेंट्रल आर्म्ड फोर्स की परीक्षा में 136 वां रैंक हासिल किया है।

ऋतुराज के पिता अरूण कुमार शांडिल्य उर्फ गुड्डू सर ने बताया कि बचपन से ही उनका सपना सेना में जाने का सपना था लेकिन वह अपने सपने को तो पूरा नहीं कर पाये लेकिन उनके पुत्र ऋतुराज ने उनके सपने को पूरा कर दिखाया है। उन्होंने बताया कि ऋतुराज की 10 वीं तक की शिक्षा नवोदय विद्यालय, रमनकाबाद, हवेली खड़गपुर से पूरा किया। जबकि 12 वीं तक की पढ़ाई मुंगेर के निजी स्कूल न्यू एरा से की। जिसके बाद वह अपने आगे की पढ़ाई के लिये बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस चला गया। जहां से उसने अंग्रेजी से स्नातक उत्तीर्ण किया।

इस दौरान बनारस में रह रहे ऋतुराज ने फोन पर बताया कि वह वर्तमान में बीएचयू से ही लॉ कर रहा है। जबकि अपने स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही सेल्फ स्टडी किया। उसने यूपीएससी परीक्षा के लिये कोई विशेष कोचिंग नहीं की। उसने बताया कि उसकी इस सफलता का श्रेय उसकी मां सुनीता देवी और पिता के साथ उसके एक भैया प्रणय प्रसून को जाता हैं। जिन्होंने हमेशा उनका सहयोग किया। ऋतुराज ने कहा कि सफलता प्राप्त करने के लिये जरूरी है कि एक लक्ष्य निर्धारित किया जाये और उस लक्ष्य के प्रति एकरूप से जुट जाना चाहिये।

ऋतुराज के पिता एक निजी शिक्षक हैं। जो घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते है जबकि उसकी मां सुनीता देवी गृहणी हैं। अपने बेटे की सफलता के बारे में कहते-कहते उनकी मां रो पड़ती है। वहीं ऋतुराज की छोटी बहन भी बीएचयू से ही पीजी कर रही है। बहन ने बताया कि कैसे सेल्फ स्टडी कर और कई समस्याओं को झेलते हुए उसके भैया ने वो मंजिल आखिरकार पा ही लिया।
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