कांग्रेस ने बुधवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने ‘‘विनाशकारी नीति निर्धारण” से देश के विनिर्माण क्षेत्र को तहस नहस कर दिया। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि कांग्रेस ने सरकार के आर्थिक कदमों को लेकर लगातार आगाह किया, लेकिन सरकार ने इसे अनसुना कर दिया और सूक्ष्म, लघु, मध्यम (एमएसएमई) और असंगठित व्यवसायों पर हमला किया।
सुनियोजित ढंग से किया गया हमला एक आर्थिक तबाही
रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘क्रेडिट रेटिंग कंपनी ‘इंडिया रेटिंग्स’ की एक नई रिपोर्ट ने उस बात की पुष्टि की है जिसे लेकर कांग्रेस लगातार आगाह करती आ रही है कि नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री द्वारा भारत के एमएसएमई और असंगठित व्यवसायों पर सुनियोजित ढंग से किया गया हमला एक आर्थिक तबाही है।” उन्होंने कहा, ‘‘मोदी सरकार का नीति निर्माण आम तौर पर असंगठित क्षेत्र को नज़रअंदाज़ करने वाला रहा है।”
नौकरियां 2016 में 3.6 करोड़ से घटकर 23 में 3.06 करोड़
रमेश के मुताबिक, ‘‘नोटबंदी, जटिल कर संरचना और बिना तैयारी के लॉकडाउन लगाने” रूपी तीन झटके विशेष रूप से इसके विनाशकारी नीति निर्धारण की ओर ध्यान दिलाते हैं। उन्होंने दावा किया कि इन तीन झटकों के कारण असंगठित क्षेत्र के 63 लाख उद्यम बंद हुए, जिससे 1.6 करोड़ नौकरियां चली गईं। रमेश ने कहा कि यह ऐसे समय हुआ जब रिकॉर्ड संख्या में युवा श्रम बाजारों में प्रवेश कर रहे हैं जबकि मोदी सरकार नौकरियों के अवसरों को नष्ट कर रही है। उन्होंने कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ के तमाम प्रचार, दिखावे और दावे के बावजूद विनिर्माण क्षेत्र की नौकरियां वित्त वर्ष 2016 में 3.6 करोड़ से घटकर वित्त वर्ष 23 में 3.06 करोड़ हो गईं।
डॉक्टर मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को वैधानिक लूट बताया
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि ‘‘नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री” ने भारत के विनिर्माण क्षेत्र को तहस नहस कर दिया है। रमेश ने कहा, ‘‘कांग्रेस प्रधानमंत्री को इन नतीजों को लेकर लगातार चेतावनी देती रही है। डॉक्टर मनमोहन सिंह ने ख़ुद संसद में नोटबंदी की निंदा करते हुए इसे ‘‘संगठित और वैधानिक लूट” बताया था। राहुल गांधी ने बार-बार एमएसएमई पर जीएसटी के ख़तरनाक दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि यह न तो अच्छा है और न सरल कर है।” उन्होंने आरोप लगाया कि 1.4 अरब भारतीय अब ‘‘नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री” के मित्रवादी पूंजीवाद, मनमाने नीति निर्धारण और मुद्दों को रचनात्मक रूप से हल न करने के आर्थिक दुष्परिणामों को भुगतने के लिए मजबूर हैं।