यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भारत के एक और स्थल को शामिल किया गया है। असम के मोईदाम ऐतिहासिक टीला शवागार को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। नई दिल्ली स्थिति भारत मंडपम में विश्व धरोहर समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया।
राईदेव मोईदाम बना भारत का 43वां विश्व धरोहर स्थल
मोइदाम विश्व धरोहर सूची में शामिल होने वाला पहला सांस्कृतिक स्थल (सांस्कृतिक विरासत श्रेणी से) और उत्तर पूर्व का तीसरा समग्र स्थल है। दो अन्य काजीरंगा और मानस हैं, जिन्हें पहले ही प्राकृतिक विरासत श्रेणी के अंतर्गत अंकित किया गया था। आज की इस घोषणा के बाद चराईदेव मोईदाम भारत का 43वां विश्व धरोहर स्थल बन गया।
सांस्कृतिक श्रेणी में चराईदेव मोईदाम को मिली जगह
संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, केंद्र सरकार एक दशक से इसे विश्व धरोहर घोषित करने की मांग कर रही थी। चराईदेव मोईदाम को सांस्कृतिक श्रेणी में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में नई दिल्ली में आयोजित विश्व धरोहर समिति के 46वें सत्र में नामित किया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस समिति के कार्यक्रम का उद्घाटन किया था।
चराइदेव मोईदाम क्या है
चराइदेव मोईदाम असम में शासन करने वाले अहोम राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने की प्रक्रिया थी। राजा को उनकी सामग्री के साथ दफनाया जाता था। चराईदेव मोईदाम पूर्वोत्तर भारत का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है। इन प्राचीन दफन टीलों का निर्माण 13वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान अहोम राजाओं ने कराया था।
घास के टीलों जैसे दिखने वाले चराईदेव मोईदाम को अहोम समुदाय पवित्र मानता है। प्रत्येक मोईदाम को एक अहोम शासक या गणमान्य व्यक्ति का विश्राम स्थल माना जाता है। यहां उनके अवशेषों के साथ-साथ मूल्यवान कलाकृतियां और खजाने संरक्षित हैं। मोईदाम असमिया पहचान और विरासत की समृद्ध परंपरा को दर्शाता है। चराईदेव मोईदाम को असम का पिरामिड भी कहा जाता है।