वातावरण को साफ रखने के लिए जरूरी समझे जाने वाले गिद्धों की प्रजातियां तेजी से खत्म हो रहीं हैं। इसके कारण पर्यावरण में रोगाणु फैल रहे हैं जो इंसानों में घातक संक्रमण फैलाने के साथ जानलेवा साबित हो रहे हैं। एक नए अध्ययन से पता चला है कि स्वच्छ वातावरण के साथ ही इंसानों की जान को महफूज रखने के लिए भी गिद्धों का होना जरूरी है। रिपोर्ट के अनुसार, 1990 में इनकी आबादी चार करोड़ थी, जो अब मात्र 60 हजार रह गई है।
प्राकृतिक सफाईकर्मी गिद्ध सड़ने से पहले मांस तेजी से खा जाते हैं। पेट में एक खास एसिड होता है, जिससे मृत पशुओं में पाए जाने वाले कई हानिकारक पदार्थ खत्म हो जाते हैं और वे इसे आसानी से पचा लेते हैं, इसलिए इन्हें प्राकृतिक सफाईकर्मी भी कहा जाता है।
बढ़ गए कुत्ते गिद्धों की कमी से आवारा कुत्तों की आबादी बढ़ गई और रेबीज का जोखिम भी बढ़ा। पहले गिद्ध जो मरे हुए जानवरों को खाते थे, अब वो कुत्ते खाते हैं। इससे रेबीज फैलने के खतरा और भी बढ़ा है। भारतीय गिद्ध मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में पाए जाते हैं, जिनमें भारत, पाकिस्तान और नेपाल शामिल हैं। ये कुछ इलाकों में दक्षिण-पूर्व एशिया में भी पाए जाते हैं।
फिलहाल इस अध्ययन पर काम जारी है और इसे अमेरिकन इकोनॉमिक रिव्यू की आगामी प्रति में छापा जाएगा।
ऐसे हुआ अध्ययन शिकागो यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर इयाल जी फ्रैंक और अनंत सुदर्शन ने यह शोध किया है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को ऐसे उपाय करने होंगे कि कचरों को नष्ट किया जा सके जिससे जहरीली चीजें निकलती हैं और लोगों में बीमारी फैला रहीं हैं।
क्यों गायब हो रहे
संकट में आए गिद्ध की प्रजातियों को 2022 में आईयूसीएन की रेड लिस्ट में डाल दिया गया। साइंस.ओआरजी में इसी माह प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, 2000-2005 के बीच पांच लाख से अधिक लोगों की मौत ऐसे रोगाणुओं से हुई जो मरे हुए पशुओं के शव से निकलकर संक्रमण फैलाने की वजह बने। अध्ययन में इसका कारण गिद्धों का गायब होना बताया गया है। गिद्धों के गायब होने के पीछे दर्दनिवारक दवा वजह है। दर्द से पीड़ित पशुओं को यह दवा दी जाती थी जिसे खाने के बाद गिद्ध की किडनी खराब होने से उनकी मौत हो जाती है। हालांकि भारत में इस दवा पर 2006 में रोक लगा दी गई ।