एआईएमआईएम (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) का नया पैंतरा राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका रहा। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने पहले बिहार की 16 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा किया, लेकिन सुस्त पड़ी रही। चार चरण की 18 सीटों पर नामांकन खत्म हो गया।
लगा कि किशनगंज को छोड़कर पार्टी अब किसी सीट से चुनाव नहीं लड़ने जा रही। दल ने ऐसे संकेत भी दिए। फिर अचानक पार्टी ने न सिर्फ अब शिवहर से प्रत्याशी उतार दिया है, बल्कि आठ और सीटों पर उम्मीदवार देने का एलान किया है।
ओवैसी के फैसले से हैरानी
ओवैसी की रणनीति से हैरानी इसलिए हो रही कि राज्य में किशनगंज के बाद सर्वाधिक मुस्लिम मतदाताओं वाली सीट अररिया और कटिहार है। करीब 42 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों के बावजूद एआईएमआईएम ने यहां प्रत्याशी नहीं दिए। कटिहार में तो एआईएमआईएम ने आदिल हसन को प्रत्याशी तक घोषित कर दिया था, लेकिन नामांकन से चंद घंटों पूर्व पार्टी का फैसला आया कि यहां से वह चुनाव नहीं लड़ेगी।
यहां टूटा समर्थकों का दिल
अररिया में पूर्व सांसद तसलीमुद्दीन के बड़े पुत्र सरफराज आलम चुनाव में ताल ठोंकने को तैयार बैठे थे। पिछली बार इस सीट से वह राजद के प्रत्याशी थे, लेकिन सरफराज का टिकट काटकर लालू ने उनके छोटे भाई शाहनवाज को लालटेन थमा दी।
बागी बनने को तैयार सरफराज को उम्मीद थी कि शायद एआईएमआईएम से उनकी दाल गल जाए, लेकिन ओवैसी की पार्टी ने अररिया को भी ऐसे ही छोड़ दिया।
सरफराज और ओवैसी समर्थकों का दिल टूट गया। किशनगंज की तरह अररिया और कटिहार में बांग्लादेशी मुसलमानों की संख्या काफी अधिक है, ये ओवैसी की आक्रामकता को पसंद करते हैं।
अब क्यों बदला स्टैंड?
किशनगंज से प्रत्याशी देने के बाद ओवैसी चुपचाप बैठे तो यह चर्चा हुई कि अंदरखाने महागठबंधन से उनका समझौता हो गया है। 2020 में सीमांचल से जीतने वाले एआईएमआईएम के चार विधायकों के राजद में मिल जाने से पार्टी पर ऐसे ही सवालिया निशान लग रहे थे। ऐसी स्थिति में एआईएमआईएम दुविधा में थी कि बिहार में वह मैदान में कितना जोर लगाए। इसी बीच खामोश बैठे ओवैसी ने किशनगंज में प्रत्याशी के पक्ष में कैंप करने की ठानी।
किशनगंज में जमाया अड्डा
26 अप्रैल को मतदान से एक सप्ताह पूर्व ओवैसी ने किशनगंज में अड्डा जमा दिया। चार दिनों तक धुंआधार प्रचार किया। इस दौरान क्षेत्र में मुस्लिम वोटरों को उनके बिंदास बोल ने खूब आकर्षित किया। भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के खिलाफ भी जब उन्होंने आग उगली तो सभाओं में जमकर तालियां बजीं।
क्या इसलिए मैदान में उतरी एआईएमआईएम
यहां से पार्टी ने अपना स्टैंड बदला और तय किया कि बिहार में अन्य सीटों पर भी वह चुनाव लड़ेगी। दरअसल, एआईएमआईएम को अहसास हो गया कि मुसलमानों को अगर यह लगा कि उनकी पार्टी का कांग्रेस का अंदरूनी गठबंधन है तो फिर उन्हें कौन पूछेगा। ऐसे में वजूद बचाने के लिए वह मैदान में उतर आई।
ऊपर कुछ और, अंदर कुछ और
शिवहर में प्रत्याशी देकर एआईएमआईएम संदेश देने की कोशिश कर रही कि वह भाजपा और महागठबंधन दोनों से लड़ रही है। हालांकि जमीनी हकीकत बता रही कि ओवैसी के निशाने पर सिर्फ एनडीए है। ऐसी सीटों पर जहां एनडीए विरोधी मतों के बंटने का खतरा है, वहां उसने प्रत्याशी देने से परहेज किया।
कटिहार में कांग्रेस के तारीक अनवर के विरुद्ध अंत समय में अपने प्रत्याशी को मैदान में उतरने से रोक दिया। अररिया में राजद प्रत्याशी शाहनवाज को मिलने वाला मुस्लिम वोट बंटे नहीं इसलिए वहां प्रत्याशी नहीं दिया।
शिवहर में एआईएमआईएम के सामने चुनौती
शिवहर में पूर्व सांसद सीताराम सिंह के बेटे राणा रणजीत सिंह को एआईएमआईएम ने अपना प्रत्याशी बनाया है, जबकि यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या महज 16 प्रतिशत है। जाहिर तौर पर मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के आधार पर खड़ी एआईएमआईएम के सामने यहां चुनौती है।
हां, वह जदयू का खेल जरूर बिगाड़ सकती है। राजपूत लवली आनंद के सामने मतदाताओं को उसने उसी जाति से राणा रणजीत सिंह को खड़ा किया है। राजपूत वोट बंटे तो इसका सीधा फायदा राजद को मिलेगा।
इन सीटों पर भी ओवैसी प्रत्याशी उतारेंगे
इन आठ सीटों गोपालगंज, पाटलिपुत्र, महाराजगंज, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, जहानाबाद, काराकाट, वाल्मीकिनगर या मोतिहारी सीट पर भी एआईएमआईएम ने प्रत्याशी देने का एलान किया है। आने वाला वक्त बताएगा कि प्रत्याशियों के मैदान में उतरने से किसे नफा-नुकसान हुआ।