बिहार में संचालित एकलव्य विद्यालयों की दयनीय हालत को लेकर गुरुवार को राज्यसभा में राष्ट्रीय जनता दल के प्रो मनोज झा ने केंद्र सरकार को घेरा. उन्होंने शून्यकाल के दौरान बिहार में एकलव्य विद्यालयों की हालत से लेकर चिंता जताई. मनोज झा ने कहा कि बिहार के एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय आदिवासी बच्चों को समान सुविधाएं देने के लिए शुरू किये गये थे। इन विद्यालयों में ढांचागत सुविधा और शिक्षकों की कमी है। इससे इन्हें शुरू करने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है।
उन्होंने कहा कि बिहार के झाझा, पश्चिम चंपारण आदि में तीन एकलव्य मॉडल विद्यालय संचालित हैं. गैर आदिवासी बच्चों की तरह ही आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले. उन्हें मुख्य धारा की सुविधाएं मिले इस उद्देश्य से एकलव्य मॉडल विद्यालय शुरू किए गए थे. लेकिन इन स्कूलों में मौलिक और आधारभूत संरचना की कमी है. यह कथनी और करनी में अंतर को दिखाता है. इस दौरान मनोज झा ने आवासीय स्कूलों का नाम एकलव्य पर रखने को लेकर भी तंज कसा. उन्होंने कहा कि एकलव्य की जिन्दगी बहुत बुरी गुजरी थी. आज भी एकलव्य से अंगूठा नहीं माँगा जा रहा है लेकिन एनएमएस माँगा जा रहा है. उन्होंने सदन में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय में बेहतर सुविधा शुरू करने की जरूरत पर बल दिया.
क्या है एकलव्य स्कूल : एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (ईएमआरएस) भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रबंधित भारत में मुफ्त आवासीय विद्यालयों की एक श्रृंखला है। इनकी स्थापना दूरस्थ क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण मध्य और उच्च विद्यालय की शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से एक सरकारी पहल के तहत की गई थी।
ईएमआरएस भारत में वंचित समुदायों के लिए शैक्षिक अंतराल को दूर करने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है। उनकी स्थापना आदिवासी और गैर-आदिवासी छात्रों के बीच शैक्षिक मानकों की खाई को पाटने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने 2024 तक 740 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय स्थापित करने का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया है। यह 564 स्कूलों के पिछले लक्ष्य से अधिक है।