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सिविल कोड पर लाल किले से बोले पीएम मोदी तो बाबा साहेब का नाम लेकर जयराम रमेश ने साधा निशाना, राजनीतिक जानकारों से मिला ऐसा जवाब

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से देश को संबोधित किया। पीएम मोदी का यह भाषण 98 मिनट का था। जिसमें भारत के विकास का विजन पीएम ने दुनिया के सामने रखा और इसके जरिए दुनिया के देशों को भारत का संदेश भी दे दिया। पीएम मोदी के इस भाषण पर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए देश में सेक्युलर सिविल कोड लागू करने की वकालत की। पीएम मोदी ने लाल किले से देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि, जिस सिविल कोड को लेकर हम लोग जी रहे हैं, वह सिविल कोड सचमुच में एक प्रकार का कम्युनल सिविल कोड है, भेदभाव करने वाला सिविल कोड है। ऐसे समय में जब हम संविधान के 75 वर्ष मना रहे हैं, जो संविधान की भावना है, जो संविधान निर्माताओं का सपना भी था और जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है,उस सपने को पूरा करने का दायित्व हम सबका है। सिविल कोड को लेकर देश में व्यापक स्तर पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए। जो कानून (सिविल कोड) धर्म के आधार पर देश को बांटता है, ऊंच-नीच का कारण बनता है। ऐसे कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता है। इसलिए मैं तो कहूंगा कि अब समय की मांग है कि देश में एक सेक्युलर सिविल कोड हो। हमने कम्युनल सिविल कोड में 75 साल बिताए हैं,अब हमें सेक्युलर सिविल कोड की तरफ जाना होगा और तब जाकर देश में धर्म के आधार पर जो भेदभाव हो रहा है, सामान्य नागरिकों को जो दूरी महसूस होती है उससे हमें मुक्ति मिलेगी।

इस पर जयराम रमेश ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री द्वारा द्वेष, शरारत और इतिहास को बदनाम करने की क्षमता की कोई सीमा नहीं है। जिसका आज लाल किले से वह पूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे।

यह कहना कि हमारे पास अब तक “सांप्रदायिक नागरिक संहिता( कम्युनल सिविल कोड)” है, डॉ. अंबेडकर का घोर अपमान है, जो हिंदू पर्सनल लॉ में सुधारों के सबसे बड़े चैंपियन थे, जो 1950 के दशक के मध्य तक एक वास्तविकता बन गया। इन सुधारों का आरएसएस और जनसंघ ने कड़ा विरोध किया था।

यहां 21 वें विधि आयोग, जिसे स्वयं नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया गया था, ने 31 अगस्त 2018 को परिवार कानून के सुधार पर अपने 182-पृष्ठ परामर्श पत्र के पैरा 1.15 में कहा था: ‘भारतीय संस्कृति की विविधता पर गर्व किया जा सकता है और इसे सराहा जाना चाहिए, लेकिन विशिष्ट समूहों या समाज के कमजोर तबकों को इस प्रक्रिया में वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इस संघर्ष के समाधान का मतलब सभी मतभेदों का उन्मूलन नहीं है। इसलिए इस आयोग ने ऐसे कानूनों पर कार्रवाई की है जो एक समान नागरिक संहिता प्रदान करने के बजाय भेदभावपूर्ण हैं, जो इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है।’

जयराम रमेश पीएम मोदी के भाषण के इस अंश में से खामी बताकर सरकार पर हमलावर तो हो गए लेकिन राजनीति के जानकारों की मानें तो बाबा साहेब अंबेडकर का संविधान हमेशा धर्मनिरपेक्ष था। नेहरू-गांधी परिवार ने जिस तरह से इसे लागू किया, उसने इस जीवंत-वास्तविकता को एक भयानक सांप्रदायिक अनुभव में बदल दिया।

इसको लेकर राजनीतिक जानकारों ने कांग्रेस की सरकार के समय के कई बातों का सामने रखा और पूछा कि तब बाबा साहेब अंबेडकर के इस संविधान की याद कांग्रेस को क्यों नहीं आई। जब शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला कांग्रेस की सरकार ने पलट दिया था? जब आपातकाल के दौरान संविधान को तोड़-मरोड़ दिया गया था? क्या आंबेडकर ने यह सब किया था या कांग्रेस की सरकार ने बाबा साहेब के संविधान को ऐसे अपनी सुविधा के लिए इस्तेमाल किया था।

वास्तव में यह डॉ अंबेडकर का संविधान ही था जिसमें अनुच्छेद 44 को नीति निर्देशक तत्व के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसे नेहरू परिवार की हर पीढ़ी के दौरान विफल किया गया है।

राजनीति के जानकारों की मानें तो समान नागरिक संहिता के प्रावधान को लेकर भी डॉ अंबेडकर ने क्या कहा था, यह कांग्रेस के लोग बताना नहीं चाह रहे हैं। बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि “मेरे दोस्त, श्री हुसैन इमाम ने संशोधनों का समर्थन करते हुए पूछा कि क्या इतने विशाल देश के लिए कानूनों की एक समान संहिता होना संभव और वांछनीय है। अब मैं स्वीकार करता हूं कि मैं उस वक्तव्य पर बहुत आश्चर्यचकित था, इसका सीधा सा कारण यह है कि इस देश में मानवीय संबंधों के लगभग प्रत्येक पहलू को शामिल करने वाली समान कानून संहिता है। हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है, जो दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता में निहित है। हमारे यहां संपत्ति के अंतरण संबंधी कानून है जो जो पूरे देश में लागू है। इसके साथ मैं असंख्य अधिनियमों का उदाहरण दे सकता हूं जो साबित करेंगे कि इस देश में व्यावहारिक रूप से एक नागरिक संहिता है, जो पूरे देश में लागू है। लेकिन, इस सब के साथ विवाह और उत्तराधिकार बस अकेला ऐसा विषय है जिसपर समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो पाई है।”


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Kumar Aditya

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