Voice Of Bihar

खबर वही जो है सही

25 जून का काला सच, खतरे के निशान को पार कर चुका था लोकतंत्र, संविधान की कॉपी देने पर थी मनाही

emergency in India by indira scaled

लोकसभा चुनाव 2024 में विपक्षी गठबंधन (यूपीए से बदलकर इंडिया) अपने पूरे चुनावी कैंपन के दौरान “संविधान खतरे में” का नारा लगाती रही। इसके बाद कल (सोमवार) 18 वीं लोकसभा सत्र के पहले दिन संसद के बाहर संविधान की कॉपी को लेकर प्रोटेस्ट किया गया। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब आजाद भारत में लोकतंत्र खतरे की निशान को पार कर चुका था। लोकतंत्र का आधार यानी की संविधान को काजग का टुकरा बना दिया गया था। उसमें लिखे जो नियम पसंद ना आए उसे बदल दिए गए। कुल मिलकार संविधान के साथ खिलवाड़ किया गया था। आज देश में इमरजेंसी (आपातकाल ) की 50वीं बरसी मनाई जा रही है।

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाइकोर्ट से आए फैसले से देश में भूचाल मच गया। हाईकोर्ट के उस फैसले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रायबरेली से लोकसभा के निर्वाचन को अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया था। जिसके बाद देश की दिशा बदल गई। इस दौरान सर्वोदय नेता जय प्रकाश नारायण ने गुजरात, बिहार के लोगों के साथ इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये सम्पूर्ण क्रांति आनंदोलन का आवाहन भी किया था। इस आंदोलन से ना जाने आज के कितने नेताओं का जन्म हुआ। विपक्षी विचार धारा वालों के इस आक्रोश से इंदिरा गांधी पर इस्तीफे का दबाव बढ़ने लगा। जिसके डर और दवाब में इंदिरा गांधी ने सभी नियमों को ताक पर रखते हुए 25 जून की रात को इमरजेंसी की घोषणा कर दी।

कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा

इमरजेंसी के घोषणा से पहले ही रातों-रात विपक्ष के बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया। मजबूत विपक्षी नेताओं को जेल में डालने के बाद देश की जुडिसियरी पर लगाम लगाने के लिए संविधान बदल दिए गए। 22 जुलाई 1975 को संविधान में 38वां संशोधन किया गया। जिसके बदौलत इमरजेंसी की घोषणा को न्यायिक समीक्षा के दायरे से ही बाहर निकाल दिया गया। न्यायलय के किसी भी फैसले का इंतजार ना करते हुए संविधान में कई बदलाव किए गए। 1971 के बाद 1976 में लोकसभा चुनाव होना था।

उस समय कुर्सी छीन जानें की वजह से कंस्टीट्यूशन में 42वां संशोधन करते हुए लोकसभा के कार्यकाल को 5 साल से बढ़ा कर 6 साल कर दिया गया। सत्ता में रहने की जिद ने संविधान को कूचल कर रख दिया। दुनिया में हमारे देश के कंस्टीट्यूशन का मजाक बनने लगा। कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया’ को ‘कंस्टीट्यूशन ऑफ इंदिरा’ कहा जाने लगा।

संविधान की प्रति मांगना गुनाह

इमरजेंसी के दौरान प्रेस में संविधान की प्रतियां छपनी बंद हो गई। संविधान की प्रति मांगना मुसीबत को न्योता देने बराबर था। प्रेस पर काबू कर लिया गया। देश में चल रहे विरोध को देखते हुए 18 जनवरी 1977 को लोकसभा चुनाव की घोषणा की गई। 19 महीनों जेल में बंद विपक्षी नेताओं को चुनाव लड़ने का बराबर मौका नहीं दिया गया। आखिरकार देश के तीनों सेना के विरोध के बाद 23 मार्च 1977 को इमरजेंसी समाप्त की गई। जिसके बाद जेल से बंद नेता बाहर आए।

संविधान में छेड़छाड़ की क्षतिपूर्ति असंभव

संविधान के साथ किए गए इस पूरे खेल में एक सकारात्मक बदलाव भी हुआ। जो की आज भी हमार संविधान का हिस्सा है। इमरजेंसी के समय ही संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़े गए। इस दौरान किए गए संशोधन में फंडामेंटल ड्यूटीज को भी जोड़ा गया था। जो आज भी संविधान को मजबूती प्रदान करता है। हालांकि आज भी संविधान में किए गए छेड़छाड़ की क्षतिपूर्ति असंभव है।


Discover more from Voice Of Bihar

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Discover more from Voice Of Bihar

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading