64 के हुए उद्धव ठाकरे, विपक्ष ने कभी कहा था ‘एक्सीडेंटल सीएम’

Uddhav Thackeray

आज उद्धव बालासाहेब ठाकरे का जन्मदिन है। उद्धव शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के बेटे हैं। पिता बाला साहेब ठाकरे जिन पर भतीजे राज ठाकरे को नदरअंदाज कर उद्धव ठाकरे को उत्तराधिकारी बनाने का आरोप लगा। बाला साहेब जिनकी पहचान ही लीक से हटकर चलने वाले राजनेता की रही। किंगमेकर की भूमिका में ताउम्र रहे। ऐसे पिता के फोटोग्राफर बेटे उद्धव से मराठी मानुष को उम्मीदें बहुत थीं, लेकिन क्या उन पर वो खरे उतर पाए!

उद्धव ठाकरे पर पिता बाला साहेब ठाकरे के सिद्धांतों से इतर चलने का आरोप लगता रहा है। यही वजह रही कि पार्टी के भीतर असंतोष इतना बढ़ा कि सत्ता में रहते हुए ही पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। 19 जून 2022 को शिवसेना की स्थापना दिवस के अगले दिन बगावत की चिंगारी भड़की और अगले स्थापना दिवस तक पार्टी बिखर गई। खुद को असल वारिस बता रहे उद्धव के हाथ से पिता की गढ़ी पार्टी निकल गई। अब वो शिवसेना यूबीटी यानि उद्धव बाला साहेब ठाकरे के प्रमुख हैं।

उद्धव पर उनके विरोधी दल कमजोर रणनीतिज्ञ और राजनेता होने का आरोप लगाते रहे हैं। नारायण राणे ने तो उन्हें एक्सिडेंटल सीएम तक कह दिया था। एक बार कहा था कि ठाकरे एक “आकस्मिक मुख्यमंत्री” थे, जिनका न तो अपनी पार्टी के निर्माण में और न ही महाराष्ट्र के विकास में कोई योगदान था। कुछ ऐसा ही पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिग्गज भाजपा नेता प्रकाश जावड़ेकर ने एमवीए के साथ जाने पर नाराजगी जाहिर की थी।कहा था, ‘उद्धव ठाकरे एक्सीडेंटल चीफ मिनिस्टर हैं। वे धोखेबाजी से मुख्यमंत्री बने। मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा-शिवसेना गठबंधन को वोट दिया था लेकिन उन्होंने धोखा दिया और मोदी विरोधियों के साथ गठबंधन कर लिया।’

उद्धव की राजनीति में एंट्री 2002 में हुई। नगरपालिका का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। फिर क्या था पिता ने बेटे में संभावनाएं देखी और कभी साए की तरह साथ रहे भतीजे राज ठाकरे नेपथ्य में चले गए। वो नाराज हुए और दो महीने बाद मार्च 2006 में मनसे का गठन कर लिया।

10 अक्टूबर 2022 को शिवसेना यूबीटी का गठन हुआ। इसका कारण उद्धव के कमजोर नेतृत्व को बताया गया। आरोप प्रत्यारोप का दौर चला तो 1991 से लेकर 2006 तक का दौर याद आ गया। दरअसल, 1991, 2005 और 2006 में भी पार्टी को छोड़ कर कई अलग धारा में बह गए थे। बस पार्टी ने इसे ही बहाना बनाया। दावा किया गया कि नुकसान नहीं होगा।

हालांकि विरोधियों ने ये भी कहा कि पहले जितनी बार भी पार्टी बंटी वो सत्ता पर काबिज नहीं थी लेकिन 2022 की स्थिति बिलकुल अलग थी। कहा गया कि उद्धव अपने लोगों को मैनेज ही नहीं कर पाए। महा विकास अघाड़ी का हिस्सा हैं, जिसमें कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) है। इससे उनकी आइडियोलॉजी को लेकर भी सवाल उठे हैं। अब न तो वो एक समुदाय विशेष के कट्टर दुश्मन के तौर पर प्रोजेक्ट हो पा रहे हैं और न उत्तर भारतीयों के विरोधी के तौर पर पहचाने जा रहे हैं। सवालों जवाबों के बीच लोग वो स्पार्क ढूंढ रहे हैं जो उन्हें बाला साहेब ठाकरे की याद दिलाता है।

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.
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