नवरात्र का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित: जानें पूजा विधि, मंत्र, आरती और खास भोग
मां कात्यायनी नवदुर्गा का छठा स्वरूप है. नवरात्र का छठा दिन मां कात्यायनी की हो समर्पित है. अपने इस स्वरूप में देवी मां अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं. लेकिन अगर आपके विवाह, प्रेम संबंध या वैवाहिक जीवन से जुड़ी कोई समस्या है तो इस शारदीय नवरात्र में मां कात्यायनी की उपासना से विशेष लाभ मिल सकता है.
मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और व्यक्ति रोग-दोषों से मुक्त हो जाता है. शास्त्रों के अनुसार देवी कात्यायनी को कात्यायन ऋषि की पुत्री होने के कारण कात्यायनी नाम से जाना जाता है. आइए आपको मां कात्यायनी की पूजन विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में बताते हैं.
षष्ठी तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, मां कात्यायनी की पूजा नवरात्र के छठे दिन यानी षष्ठी तिथि को होती है. षष्ठी तिथि 8 अक्टूबर दिन मंगलवार को सुबह 11.17 बजे से लेकर 9 अक्टूबर दिन बुधवार को दोपहर 12.14 बजे तक रहने वाली है.
पूजा विधि
- नवरात्र के छठे दिन सुबह उठकर स्नान करें और साथ-सुथरे कपड़े धारण कर लें.
- इसके बाद पूजा स्थल की अच्छे से साफ-सफाई करें.
- सबसे पहले कलश पूजन करें और फिर मां कात्यायनी का ध्यान करें.
- फिर मां को अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि चीजें अर्पित करें.
- धूप- दीप जलाकर माता रानी की चालीसा, आरती का विधि विधान से पाठ करें.
- इसके बाद मां कात्यायनी को उनका प्रिय भोग लगाएं.
कैसे करें मां कात्यायनी की पूजा?
गोधूली वेला में पीले या लाल कपड़े पहनकर इनकी पूजा करनी चाहिए. इनको पीले फूल और पीली मिठाई अर्पित करें. मां के इस स्वरूप को शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है. मां को सुगन्धित पुष्प अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनेंगे और साथ ही प्रेम से जुड़ी बाधाएं भी दूर होंगी. इसके बाद मां के सामने उनके मंत्रों का जाप करें.
मां कात्यायनी का भोग
नवरात्र के छठे दिन मां को शहद का भोग लगाएं. देवी को शहद का भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटें. इससे आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी.
कौन सी कामनाएं पूरी करेंगी मां कात्यायनी?
कन्याओं के शीघ्र विवाह के लिए इनकी पूजा अद्भुत मानी जाती है. मनचाहे विवाह और प्रेम विवाह के लिए भी इनकी उपासना की जाती है. सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी इनकी पूजा फलदायी होती है. अगर कुंडली में विवाह के योग क्षीण हों तो भी देवी कृपा से विवाह हो जाता है. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो देवी की उपासना में नियम-कायदों का विशेष महत्व है. विवाह के मामलों में इनकी पूजा अचूक होती है.
मां कात्यायनी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक वन में कत नाम के एक महर्षि थे. उनका एक पुत्र था जिसका नाम कात्य रखा गया. इसके पश्चात कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने जन्म लिया. उनकी कोई संतान नहीं थी. मां भगवती को पुत्री के रूप में पाने की इच्छा रखते हुए उन्होंने पराम्बा की कठोर तपस्या की. महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया. कुछ समय बीतने के बाद राक्षस महिषासुर का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया. तब त्रिदेवों के तेज से एक कन्या ने जन्म लिया और उसका वध कर दिया. कात्य गोत्र में जन्म लेने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया.
मां कात्यायनी मंत्र-
- सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
-ऊं क्लीं कात्यायनी महामाया महायोगिन्य घीश्वरी,
नन्द गोप सुतं देवि पतिं मे कुरुते नमः।।
- पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्त अनुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम्।।
मां कात्यायनी का ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
मां कात्यायनी की आरती
जय जय अम्बे जय कात्यायनी।
जय जग माता जग की महारानी॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥
कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥
हर जगह उत्सव होते रहते। हर मन्दिर में भगत है कहते॥
कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥
झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥
हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥
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