Sharda Sinha Death : पति के निधन के बाद टूट गयी शारदा सिन्हा, मात्र 45 दिन के बाद दुनिया को कहा अलविदा
Sharda Sinha Death : बिहार की कोकिला पद्मश्री, पद्मविभूषण से सम्मानित प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा अब हम सबके बीच नहीं रही। मात्र डेढ़ महीने पहले ही उनके पति डॉ. ब्रिज भूषण सिन्हा का निधन हो गया था। उनकी उम्र 80 साल की थी। घर में ही गिर जाने की वजह से उनके सिर में चोट आई थी। जिससे उनका ब्रेन हेमरेज कर गया था। 22 सितम्बर को ब्रिजभूषण सिन्हा ने अंतिम साँस ली। डॉ. ब्रिज भूषण सिन्हा शिक्षा विभाग में रिजनल डिप्टी डायरेक्टर के पद से रिटायर हुए थे। हालाँकि पति के निधन के बाद शारदा सिन्हा टूट गयी थी। उन्होंने अपने सोशल मीडिया में भावुक पोस्ट किया और लिखा ‘लाल सिंदूर बिन मंगियों न सोभे….पर सिन्हा साहब की मधुर स्मृतियों के सहारे संगीत यात्रा को चलायमान रखने की कोशिश रहेगी।‘ सिन्हा साहब को मेरा प्रणाम समर्पित।‘
वहीँ पति की स्मृतियों को लेकर शारदा सिन्हा ने जन्मदिन के मौके पर लिखा की जब सब घर में सो रहे होते थे, आज के दिन सिन्हा साहब , चुपके से उठ कर फूल वाले के पास जाते थे, दो गुलाब और कुछ चटपटा नाश्ता, हाथ में लिए, एक नटखट सी हंसी अपने आंखों में दबाए, घर आते थे, बिना आवाज किए, मेरे सिरहाने में रखी कुर्सी पर बैठ कर, इंतजार करते थे कि कब मैं उठूं, और वो मुझे वो दो गुलाब दे कर कहें, “जन्मदिन हो आज तुम्हे मुबारक, तुम्हे गुलसितां की कलियां मिले, बहारे न जाएं तुम्हारे चमन से, तुम्हे जिंदगी की खुशियां मिलें”। फिर मैं अर्ध निद्रा में, आंखे मलते हुए उठती, उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम करती, और इससे पहले कि मैं अच्छी शब्दावली का चयन कर उन्हे धन्यवाद कहती, वे अधीर हो पूछ बैठते थे , ….” अरे भाई, आज तो कुछ खास होना चाहिए खाने में, फिर वो चटपटा नाश्ता मेरे ठीक सिरहाने रख कर कहते, हांजी ये सबके लिए है”। मैं उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने के हिसाब से उन्हें मना करती, “मत खाइए ये सब , तबियत खराब हो जाएगी…. अरे छोड़ो जी…मस्ती में रहो कह कर चल देते ।
मैं बच्चों से कहती, उनको मत देना इस नाश्ते में से, वो पक्का पहले ही खा चुके होंगे… चश्में के ऊपर से वो मुझे घूरते और कहते..नही नही, मैं उन्हें और जोर से घूरती तो चुप चाप कह देते थे, …थोड़ा खाया था मैंने। फिर मैं बच्चों से उनकी दावा दिलवा कर उन्हे आराम करने को कहती थी।
लिखा की बिना सिन्हा साहब के ये दिन शूल सा गड़ता है मुझे, आज मैं क्या पूरी दुनियां ही उन्हें फूलों से सजा रही है । एकाद्शा/ द्वादशा की तैयारियां हैं, अब थोड़ा नाश्ता क्या पूरा भोज सामने है। ये कौन सा तोहफा दे गए सिन्हा साहब ?!? उनसे अंतिम मुलाकात 17 सितंबर की शाम हुई, जब मैंने कहा था, 3 दिनों में मैं लौट कर आ जाऊंगी, आप अपना ध्यान रखिएगा। उन्होंने मुझे कहा, “… मैं बिल्कुल ठीक हूं , आप बस स्वस्थ रहिए.. और जल्दी लौट जाईयेगा “। हाथ जोड़ कर ढब ढबाती आंखें मुझे आखरी बार देख रही थीं ये कौन जानता था। आज का दिन बहुत भारी है । सिन्हा साहब की मौजूदगी का एहसास मुझे तो है ही , दोनो बच्चों वंदना और अंशुमन को तो ऐसा लगता है जैसे पिताजी कहीं गए हैं , थोड़ी देर से लौट आएंगे । ये चीरता सन्नाटा, ये शूल सी चुभन, हृदय जैसे फट कर बाहर आ जाएगा ! आखरी मुलाकात की एक तस्वीर बची है, सबके दर्शनार्थ यहां साझा कर रही हूं । पोती उनकी गोद में है, आंखे उनकी भरी भरी, मैं द्रवित सी, दिलासा देती साथ खड़ी हूं । मैं जल्द ही आउंगी … मैने बस यही कहा था उनसे ……!
Discover more from Voice Of Bihar
Subscribe to get the latest posts sent to your email.