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हर साल छठ मनाने ससुराल आती थीं शारदा सिन्हा, निधन से सीहमा गांव का हर आंगन हो गया सूना

हर छठ में अपने सुसराल आने वाली शारदा सिन्हा अब फिर कभी लौट कर अपने सुसराल नहीं आएंगी. लोक गायिका शारदा सिन्हा ने दिल्ली के एम्स में बीते मंगलवार को आखिरी सांस ली. शारदा सिन्हा के निधन की खबर लगते ही उनके सुसराल बेगूसराय के सीहमा गांव में मातमी सन्नाटा पसर गया है.

सब की चहेती थीं शारदा सिन्हा: सुसराल के लोगों का कहना है कि वो गांव के बच्चे बूढ़े महिला पुरुष हर किसी की चहेती थी और लोगों के दिलों में राज करती थी. कुछ महीने पहले उनके पति के निधन के बाद भी गांव के लोग बहुत दुखी हुई थी, लेकिन आज शारदा सिन्हा के निधन से लोगों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. गांव के लोगों ने उनकी सेहत की सलामती के लिए गांव में पूजा अर्चना भी की थी पर होनी को कुछ और ही मंजूर था.

बेगूसराय में शोक की लहर: लोकगायिका शारदा सिन्हा के देवर जय किशोर ने बताया कि जब भी वो ससुराल आती थीं तो यहां के लोगों में मिलजुल कर बातें करती थीं. गांव के प्रति जो उनका विश्वास था लोगों में इसका बखान करना काफी मुश्किल है. हाल ही में गांव में जब जग और भोज हुआ था तो वह हम सभी बुजुर्गों से भी मिली थीं. गांव का कोई ऐसा कार्यक्रम ना होता था जो शारदा सिन्हा मिस कर दें. गीतों की नायक होने की वजह से गांव वालों का विशेष लगाव रहा है.

“जिंदगी में जितनी अहमियत पर्व और त्योहार रखते हैं उतनी ही तरजीह गीतों को दी जाती है. तभी हर मांगलिक कार्यों पर गीत गाने की परंपरा रही है. गीतों के बिना पर्व अधूरा है. पद्मभूषण शारदा सिन्हा की सुरीली आवाज के बिना छठ पर्व सूना है. उनके जाने से पूरा गांव मर्माहत है.” – जय किशोर सिंह, छोटा देवर

छठ में अपने सुसराल जरूर आती थीं: सुधाकर सिंह ने बताया कि एक महीना दो दिन पहले उनके पति का निधन हो गया था, जिसमें वो शामिल होने गए थे. शारदा सिन्हा को ब्लड कैंसर था. शारदा सिन्हा हर छठ में अपने सुसराल जरूर आती थी. छठ के बाद भी वो अपने सुसराल आई थी. उनका अपने सुसराल के लोगों से गहरा लगाव था. शारदा सिन्हा ने उन लोगों के लिए बहुत कुछ किया है.

पांच महीने पहले आयीं थीं सिहमा: पड़ोसी योगेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि शारदा सिन्हा पूरे इंडिया की शान थी. उनके निधन पर गांव के लोग अपने अपने तरीके से शोक मना रहे हैं. भोजपुरी की आन बान शान शारदा सिन्हा के निधन से काफी दुखी हैं. योगेंद्र प्रसाद सिंह ने बताया कि चार पांच महिला पहले सिहमा आई थी. शारदा सिन्हा का उनकी मां से बहुत लगाव था वो जब भी बेगूसराय आती थी तो उनसे बुलाकर अवश्य मिलती थी.

सीहमा गांव में हुई थी शादी: बताते चले कि बेगूसराय के सीहमा गांव के रहने वाले ब्रजकिशोर सिन्हा से उनकी शादी 1970 में हुई थी. शारदा सिन्हा के एक पुत्र और पुत्री की मां थी. छठ पूजा के लिए गाये गए उनके गीत के बिनाछठ अधूरा था. बीती रात उनके निधन से पूरा देश शोकाकुल है. पद्म भूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके गीत रिकॉर्डिंग के माध्यम से आज भी छठ घाटों पर उनकी याद को ताजा करेगी.
सुपौल के हुलास गांव में हुआ था जन्म: बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मीं शारदा सिन्हा ने अपने मधुर गीतों से भारतीय लोक संगीत को नया आयाम और अद्वितीय पहचान दिलाई. उनकी गायिकी में न सिर्फ बिहार की, बल्कि पूरे भारत की लोक संस्कृति की महक बसी थी. शारदा सिन्हा के गाए हुए गीत भारतीय त्योहारों और पर्वों का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं.

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