आखिर क्यों मनाया जाता है नवरात्रि में गरबा? क्यों होती है 9 रातों तक ‘Garba’ जानिए पूरी जनकारी….
नवरात्रि आते ही उल्लास और रोमांच का जीवन में संचार होता है। चाहें कोई धर्म, सम्प्रदाय या जाति से हों लेकिन सभी के बीच एक समानता खुशी है लेकिन इसके अलावा भी एक ऐसी खासियत है जो सभी के बीच कॉमन है। यह है इन त्योहारों को छोटे-छोटे रीति-रिवाजों से जोड़ देना। हर एक त्योहार अपने इतिहास के आधार से मनाया जाता है, इसके इतिहास से ही पर्व का असली महत्व उत्पन्न होता है लेकिन क्षेत्रों के हिसाब से लोग त्योहारों को कुछ ऐसे रिवाजों से जोड़ देते हैं जो एक बार आरंभ होते हैं तो सदियों तक चलते हैं। नवरात्रि भी ऐसा ही पर्व है शक्ति का पर्व है, मां के नौ रूपों की पूजा एवं अर्चना का पर्व है लेकिन इस पर्व के साथ भी खुशी ज़ाहिर करने का एक ट्रेंड चालू हो गया है जिसे गरबा कहा जाता है।
गरबा बिना नवरात्रि अधूरी गरबा का नवरात्रि से कुछ ऐतिहासिक संबंध भी है। नवरात्रि का पर्व आने से पहले ही पूरे भारत में ही गरबा शुरू हो जाते हैं। जगह-जगह नवरात्रि मेले लगते हैं जहां धूमधाम से गरबा नृत्य होता है। आज के ट्रेंड के हिसाब से गरबा में गीत गाने के लिए खासतौर से प्रसिद्ध गीतकारों को ढेरों रुपया देकर आमंत्रित किया जाता है। पूरी रात लोगों का मनोरंजन करते हैं और इनके गीतों पर लोग गरबा करने से थकते नहीं हैं। पूरे नौ दिन ऐसा ही दृश्य बना रहता है।
गरबा का क्रेज़ आजकल इतना बढ़ गया है कि जो लोग नवरात्रि का अर्थ भी नहीं जानते वे भी गरबा नृत्य में लाभ लेने से नहीं चूकते। यूं तो आजकल हर गली और चौराहे पर नवरात्रि के दौरान गरबा की धमक रहती हैं, लेकिन जब कभी कोई गरबा का नाम लेता है तो मन में सर्वप्रथम भारतीय राज्य गुजरात याद आ जाता है। गरबा नृत्य गुजरातियों के बीच बेहद मशहूर है। कढ़ाई वाली चोली, सुंदर दुपट्टे लिए महिलाएं और लंबी कुर्ती और धोती में पुरुष, यह गरबा का पारम्परिक पहनावा है। गुजरात में यह पहनावा आमतौर देखने को मिलता है। वैसे गुजरात के अलावा राजस्थान में भी गरबा का काफी महत्व है।
गरबा भी जरूरी मान्यता के अनुसार, नवरात्रि की नौ रातों में मां को प्रसन्न करने के लिए नृत्य का सहारा लिया जाता है। यूं तो वर्षों से ही हिन्दू मान्यताओं में नृत्य को भक्ति एवं साधना को एक मार्ग माना गया है। इसलिए यह मान्यता प्रचलित है कि गरबा के जरिए भक्त मां को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां हम गरबा एवं नवरात्रि का महत्व कुछ गहराई से जानने की कोशिश करेंगे। गरबा का संस्कृत नाम गर्भ-द्वीप है। गरबा के आरंभ में देवी के निकट छिद्र कच्चे घट को फूलों से सजा कर उसमें दीपक रखा जाता है। इस दीप को ही दीपगर्भ या गर्भ दीप कहा जाता है। लेकिन जैसे-जैसे गर्भ द्वीप भारत के विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंचा, इसके नाम में कई बदलाव आए। और अंत में यह शब्द ‘गरबा’ बन गया, तभी से सब लोग इस नृत्य को गरबा के नाम से ही जानते हैं। मतलब की , नवरात्रि के पहले दिन मिट्टी के घड़े में कई छेद किए जाते हैं। इसके बाद एक दीप प्रज्वलित करके इसके अंदर रखा जाता है। साथ ही एक चांदी का सिक्का भी रखा जाता है। इस दीपक को ही दीप गर्भ कहा जाता है, जिसके आस-पास लोग गरबा खेलते हैं। माना जाता है कि गरबा करने से माता रानी प्रसन्न होती हैं।
इसलिए दीप गर्भ की स्थापना के पास महिलाएं और पुरुष रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर माता शक्ति के समक्ष नृत्य करती हैं। गरबा के दौरान महिलाओं द्वारा 3 तालियां भी बजाई जाती हैं जो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित मानी जाती है। 3 तालियां बजाकर तीनों देवताओं का आह्वान किया जाता है। साथ ही गरबा के दौरान चुटकी, डांडिया और मंजीरों का उपयोग किया जाता है। ताल से ताल मिलाने के लिए स्त्री और पुरुष समूह बनाकर नृत्य करते हैं। नवरात्रि की पहली रात गरबा की स्थापना कर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है। इसके बाद महिलाएं इसके चारों ओर ताली बजाते हुए फेरे लगाती हैं। घेरे में महिलाओं का इस तरह से घूमना अनिवार्य माना गया है। यह पहला शुभ नृत्य होता है। गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा या डांडिया और मंजीरा आदि का इस्तेमाल ताल देने के लिए किया जाता है। महिलाएं समूह में मिलकर नृत्य करती हैं। इस दौरान देवी के गीत गाए जाते हैं। लेकिन वह समय क्या था जब पहली बार या फिर धीरे-धीरे गरबा का भारत में चलन हुआ। मां दुर्गा की भक्ति गरबा के बिना अधूरी आज के दौर में गरबा को भारत के विश्व विख्यात नृत्यों में से एक माना जाता है। अब यह कोई आम नृत्य नहीं रहा, विश्व भर में इस नृत्य का प्रचार किया जाता है। ना केवल त्यौहारों के दौरान, वरन् समय-समय पर यह नृत्य भारतीय साहित्य को दर्शाता रहता है। नवरात्रि के इन नौ दिनों में मातारानी के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती हैं। मातारानी की स्तुति करने का एक जरिया गरबा और डांडिया होता हैं, जो नवरात्रि के पहले दिन से ही खेला जाता हैं। मातारानी को प्रसन्न करने के लिए लोग खूबसूरत रंग-बिरंगे पारंपरिक पोशाक में डांडिया और गरबा का आयोजन करते हैं। गरबा और डांडिया से जुडी आध्यात्मिक बातें बताने जा रहे हैं कि किस तरह से इनसे मातारानी की स्तुति होती हैं। नवरात्र के 9 दिन में मां को प्रसन्न करने के उपायों में से एक है नृत्य। शास्त्रों में नृत्य को साधना का एक मार्ग बताया गया है। गरबा नृत्य के माध्यम से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए देशभर में इसका आयोजन किया जाता है। गरबा का शाब्दिक अर्थ है गर्भ दीप। गर्भ दीप को स्त्री के गर्भ की सृजन शक्ति का प्रतीक माना गया है। इसी शक्ति की मां दुर्गा के स्वरूप में पूजा की जाता है। गरबा का आरंभ करने से पहले मिट्टी के कई छिद्रों वाले घड़े के अंदर एक दीप प्रज्वलित करके मां शक्ति का आह्वान किया जाता है। फिर इसी ‘गरबा’ के चारों ओर नृत्य कर महिलाएं मां दुर्गा को प्रसन्न करती हैं।गरबा नृत्य के दौरान आपने देखा होगा कि महिलाएं 3 तालियों का प्रयोग करती हैं। ये 3 तालियां इस पूरे ब्रह्मांड के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित होती हैं। गरबा नृत्य में ये तीन तालियां बजाकर इन तीनों देवताओं का आह्वान किया जाता है। इन 3 तालियों की ध्वनि से जो तेज प्रकट होता है और तरंगें उत्पन्न होती हैं, उससे शक्ति स्वरूपा मां अंबा जागृत होती हैं। पहले गरबा का आयोजन केवल गुजरात में हुआ करता था। यह नृत्य केवल गुजरातियों की ही शान माना जाता है। आजादी के बाद से गुजरातियों ने प्रांत के बाहर निकलना शुरू किया तो अन्य प्रदेशों में भी यह परंपरा पहुंच गई। आज यह देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी आयोजित किया जाता है।
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