Gaganyaan की टेस्ट फ्लाइट अबॉर्ट; जानें मिशन के बारे में सब कुछ, इससे भारत को क्या फायदा होगा?
इसरो ने आज आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से गगनयान मिशन की पहली टेस्टिंग फ्लाइट लॉन्च करनी थी, लेकिन खराब मौसम के कारण फ्लाइट को अबॉर्ट कर दिया गया, लेकिन इस टेस्ट का मकसद भविष्य में मानव रहित स्पेस मिशन के लिए एक मंच तैयार करना है। टेस्ट के तहत क्रू मॉड्यूल को आउटर स्पेस में लॉन्च किया जाएगा, फिर उसे धरती पर वापस लाकर बंगाल की खाड़ी में उतारा जाएगा। नेवी को इस क्रू मॉड्यूल को रिकवर करने का जिम्मा सौंपा गया है।
अगर यह टेस्ट सफल रहा तो इसके बाद 3 और टेस्ट डी-2, डी-3, डी-4 किए जाएंगे। इसके बाद साल 2024 में गगनयान मिशन के तहत 3 लोगों को 3 दिन के लिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। 3 एस्ट्रोनॉट (अंतरिक्ष यात्री) को धरती के लोअर ऑर्बिट में भेजने की कोशिश की जाएगी। गगनयान 3 दिन पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाएगा। इसकी समुद्र में सुरक्षित लैंडिंग की जाएगी। 17 किलोमीटर की ऊंचाई तक टेस्ट फ्लाइट जाएगी।
10 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट और बाहुबली रॉकेट में लॉन्चिंग
गगनयान मिशन करीब 10 हजार करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट है। इसके लिए करीब 90.23 अरब रुपए का बजट आवंटित किया गया है। अभी तक इस पर 3 हजार करोड़ खर्च किये जा चुके हैं। वहीं गगनयान को लॉन्च करने के लिए बाहुबली रॉकेट LVM3 रॉकेट इस्तेमाल होगा। यह इसरो का सबसे पॉवरफुल रॉकेट लॉन्चर है। यह रॉकेट 3 चरणों में काम करता है।
इसके पहले हिस्से में थ्रस्ट के लिए 2 सॉलिड फ्यूल बूस्टर लगाए गए हैं। कोर थ्रस्ट के लिए एक लिक्विड बूस्टर लगाया गया है। चंद्रयान-3 भी इसी रॉकेट से लॉन्च किया गया था। गगनयान मिशन के लिए रॉकेट में बदलाव करके इसे मानव रहित बनाया गया है। ऊपरी हिस्से में क्रू एस्केप सिस्टम लगाया गया है, ताकि किसी भी आपातकालीन परिस्थिति में एस्ट्रोनॉट को बचाया जा सके।
क्यों इतना खास है यह गगनयान मिशन?
गगनयान अपनी स्पीड के जरिए अंतरिक्ष यात्रियों को दबाव वाले पृथ्वी जैसे वातावरण में रखेगा। यह भी जांच करेगा कि अबॉर्शन सिस्टम कितनी अच्छी तरह काम करती है। गगनयान मिशन सफल होने से इसरो, एजुकेशन, उद्योगों, राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों और अन्य वैज्ञानिक संगठनों के बीच सहयोग के लिए एक व्यापक ढांचा स्थापित होगा। इससे तकनीकी और औद्योगिक क्षमताओं को एकत्रित करने में सहयोग मिलेग। अनुसंधान के अवसर मिलेंगे, जिससे प्रौद्योगिकी के विकास में भागीदारी संभव होगी, जिससे बड़ी संख्या में छात्रों और शोधकर्ताओं का फायदा होगा।
अब से पहले 3 देश भेज चुके ऐसा मिशन
साइंस एंड टेक्नोलॉजी मिनिस्टर जितेंद्र सिंह ने बताया कि टेस्टिंग में कोई इंसान नहीं जाएगा। वहीं अगर भारत अपने इस मिशन में कामयाब हुआ तो वह ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। अब से पहले अमेरिका, चीन और रूस ऐसा मिशन लॉन्च करके सफल हो चुके हैं। 12 अप्रैल 1961 को सोवियत रूस के यूरी गागरिन 108 मिनट स्पेस में रहे। 5 मई 1961 को अमेरिका के एलन शेफर्ड 15 मिनट स्पेस में रहे। 5 अक्टूबर 2003 को चीन के यांग लिवेड 21 घंटे स्पेस में रहे।
मिशन के लिए तैयार हो रहे 4 एस्ट्रोनॉट्स
बता दें कि 2018 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस मिशन की घोषणा की थी, जिसे 2022 तक पूरा किया जाना था, लेकिन कोरोना काल के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया। अब इसे 2024 के आखिर तक या 2025 की शुरुआत में पूरा करने का लक्ष्य है। इसरो इस मिशन के लिए 4 एस्ट्रोनॉट्स को प्रशिक्षित कर रहा हे। इसके लिए बैंगलुरु में एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग फैसिलिटी में क्लासरूम ट्रेनिंग, फिजिकल फिटनेस ट्रेनिंग, सिम्युलेटर ट्रेनिंग और फ्लाइट सूट ट्रेनिंग दी जा रही है।
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