पटना:- जाति के बिना बिहार की राजनीति की बातें नहीं होती. बिहार में जातिगत तौर पर वोटरों को अपने पाले में करने के लिए सभी राजनीतिक दल प्रयास में रहते हैं. ऐसे में सियासी दलों के किसी भी आयोजन में जातीय समीकरणों को जोड़कर देखा जाना बेहद आम बात होती है. अब ऐसा ही कुछ राष्ट्रीय जनता दल के एक आयोजन को लेकर कहा जा रहा है. लालू यादव की पार्टी राजद द्वारा 5 नम्वबर को पटना में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह उर्फ़ श्रीबाबू की जयंती मनाई जा रही है. राजद कार्यालय में आयोजित होने वाले इस जयंती समारोह के लिए पटना की सड़कों पर बैनर-पोस्टर भी लगाए गए हैं. ऐसे में राजद का श्री बाबू की जयंती मनाने के पीछे की वजह पर भी सियासी चर्चा तेज हो गई हैकि क्या यह सब भूमिहार जाति को अपने पाले में लाने की कवायद है.

दरअसल, श्रीबाबू बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री रहे. उन्हें आधुनिक बिहार का निर्माता कहा जाता है. उनके शासन काल में बिहार में उद्योग, ढांचागत विकास, कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में विकास के कई काम हुए. श्रीबाबू भूमिहार जाति से आते हैं. वहीं हाल के कुछ वर्षों में राजद और भूमिहारों को लेकर आम धारणा रही कि दोनों एक दूसरे को नापसंद करते हैं. यहां तक कि वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने किसी भी भूमिहार को प्रत्याशी नहीं बनाया. वहीं 2020 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक भूमिहार प्रत्याशी के रूप में अनंत सिंह को मोकामा से राजद ने टिकट दिया.

ऐसे में अब श्रीबाबू की जयंती का राजद कार्यालय में आयोजन होना चर्चा का विषय बन हुआ है. राजद में जब से तेजस्वी यादव सक्रिय हुए हैं वे कई मंचों से इस बात को दोहरा चुके हैं कि आरजेडी अब ए टू जेड की पार्टी हो गई है. राजद के इस ए टू जेड में भूमिहार जाति सबसे अहम किरदार के रूप में देखा गया. पिछले साल हुए एमएलसी चुनाव में आरजेडी से तीन भूमिहार उम्मीदवारों की जीत हुई. बोचहां और मोकामा विधानसभा उपचुनाव में भूमिहार का बड़ा वोट आरजेडी को मिला. इसे राजद और भूमिहारों के बदले रिश्ते के रूप में देखा गया.

यहां तक कि राजद ने पूर्व डीजीपी करुणासागर को पार्टी में शामिल कराया जो भूमिहार जाति से आते हैं. उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई. पिछले दिनों ही बिहार कांग्रेस ने जब श्रीबाबू की जयंती मनाई तो वहां भी लालू यादव शामिल हुए. उन्होंने मंच से कहा कि भूमिहार अपनी जाति के नेता को याद नहीं करता जबकि वे हमेशा श्रीबाबू की जयंती में शामिल होते रहे हैं. वहीं अब राजद द्वारा श्रीबाबू की जयंती मनाना भी एक बड़े जातीय संदेश के रूप में देखा जा रहा है.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हाल के वर्षों में भूमिहारों को भाजपा का कोर वोट बैंक कहा जाने लगा है. ऐसे में सामाजिक रूप से प्रभावशाली इस जाति को अपनी ओर आकर्षित कर राजद बड़ा लाभ ले सकती है. पिछले एमएलसी चुनाव और विधासनभा उपचुनाव में यह साबित हुआ है कि राजद ने भूमिहारों को भरोसा दिया तो उनके उम्मीदवार चुनाव जीत गए. अब अगले लोकसभा चुनाव के पहले राजद एक बार फिर से उसी क्रम को आगे बढ़ाने में लगा है. इसलिए 5 नम्वबर को पटना में बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह उर्फ़ श्रीबाबू की जयंती मनाकर पार्टी एक तरह से भूमिहारों को बड़ा संदेश देने की कोशिश करेगी. माना जा रहा है कि इस आयोजन में राजद में शामिल तमाम भूमिहार चेहरों को एक मंच पर जगह मिलेगी.


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