भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं खगड़ा माँ काली,312 वर्ष पुराना है मंदिर का इतिहास
312 वर्ष पुराना है खगड़ा काली मंदिर का इतिहास, भक्तों की होती है मनोकामना पूरी
नवगछिया प्रखंड स्थित खगड़ा वाली मैया की महिमा अपरंपार मानी जाती है मैया के दरबार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है। गांव के लोग वैदिक एवं तांत्रिक पद्धति से माँ की पूजा अर्चना करते हैं। यहां के मंदिर का इतिहास करीब 312 वर्ष पुराना है। ग्रामीणों का कहना है कि बाबू धौताल सिंह के तीसरे वंशज बाबू प्रभु नारायण सिंह के सपने में माँ बम काली के स्थापना की जागृति हुई तब से लेकर आज तक उनके वंशज द्वारा माँ काली की तांत्रिक विधि विधान के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है।
खगड़ा के ग्रामीण कहते हैं कि माता की इस मंदिर की स्थापना वर्षों पूर्व उनके पूर्वजों ने की है। मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हैं कि तीन सौ वर्ष पहले माँ काली का मेड़ बाढ़ के समय में मे भस कर आ गया था। जिसके बाद ग्रामीणों ने मिलकर खगड़ा गांव में माता की मंदिर को स्थापित कर दिया गया। उस समय जमींदार स्व बनारसी बाबू जो भागलपुर के रहने वाले थे वो पूरे खगड़ा मौजा के जमींदार थे। खगड़ा के नया टोला से लेकर कनकी टोला तक का वहीं माँ बम काली मंदिर का नींव रखे और अपने परिवार के देखरेख में मंदिर का पूजन किया। जब स्व बनारसी बाबू का स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्होंने अपने सिपाही स्व प्रभुनारायण सिंह, स्व गैना सिंह, स्व गिरजा सिंह के परिवार के देखरेख में मंदिर में पूजा करने के लिए दे दिया गया।
उस समय से लेकर आज तक उन ही के परिवार ने मंदिर का पुनः निर्माण करवाया गया। ग्रामीणों ने कहा कि कातिक कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन माँ बम काली की वैदिक और तांत्रिक विधि द्वारा से पूजा होती है। मंदिर में मां की पूजा अर्चना के बाद को मां काली की प्रतिमा शाम में विसर्जन की जाती है।
पूजा में मां काली की आठ फीट की प्रतिमा बनाई जाती है। समिति के ग्रामीणों ने बताया कि मां काली खगरा के मंदिर में पांच सौ पाठा की बलि दी जाती है और भैसा का भी बलि दी जाती है। मां के मंदिर में जो भी सच्चे मन से पूजा करता है उसकी मनोकामना पूर्ण कर देती है। माँ काली यह बम काली नवगछिया अनुमंडल में मात्र दो ही जगहों पर है बिहपुर व खगड़ा में है। बिहपुर में मां की प्रतिमा का विसर्जन सूर्योदय से पहले ही किया जाता है और यहां पर शाम को विसर्जन किया जाता है।
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