झारखंड के देवघर में रहने वाले 66 साल के हरे राम पांडे किसी भगवान से कम नहीं है। अकेले अपने दम पर ये 35 लावारिस लड़कियों को पाल रहे हैं। इतना ही नहीं इनकी शिक्षा से लेकर सभी तरह की जरूरत पूरी कर रहे हैं। हालांकि उन्हें इसके लिए रोजाना कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हरे राम पांडे की ये कहानी शुरू होती है, 9 दिसंबर 2004 को जब हरे राम पांडे का जीवन हमेशा के लिए बदल गया। उन्हें जंगल में एक नवजात बच्ची लावारिस हालत में मिली।

उन्होंने बताया कि जब मुझे यह लड़की मिली तो वह बहुत बुरी हालत में थी। उसके तुरंत इलाज के लिए अस्पताल ले गया। हालांकि डॉक्टर ने भी उम्मीद खो दी थी लेकिन मुझे पता था कि यह लड़की मेरे लिए भगवान का गिफ्ट है और जीवित रही। आज उसकी उम्र 19 साल है, हमने उसका नाम तापसी रखा। उन्होंने बताया कि उनकी 35 बेटियों में तापसी भी एक है। बता दें कि हरे राम पांडे को ये बच्चियां ट्रेनों, जगंलों या दूरस्थ स्थानों पर मिलीं। जहां इनके माता-पिता इन्हें छोड़ कर चले गए। पांडे अपनी पत्नी के साथ झारखंड के देवघर में नारयण सेवा आश्रम चलाते हैं, जहां इन लड़कियों का पालन-पोषण कर रहे हैं। पांडे अपने शानदार काम के लिए कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) के एक एपिसोड में भी नजर आ चुके हैं।

पांडे बच्चियों के लिए चलाते हैं आश्रम

पांडे ने बताया कि तापसी के पहले जन्मदिन पर उन्हें को एक और लावारिस नवजात बच्ची के बारे में फोन आया। उन्होंने बताया कि जब खुशी नाम की यह लड़की भी बच गई तो ऐसी लड़कियों के लिए एक आश्रम बनाने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने नारायण सेवा आश्रम को एक ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर कराया। मैंने पहली बार तापसी को देखा, तो मेरी आत्मा इस छोटे से इंसान से जुड़ गई। इन लड़कियों को कोई कैसे छोड़ सकता है? वे जीने के लायक हैं और मैंने जितना संभव हो सका उतनी लड़कियों की मदद करने का संकल्प लिया।

स्थानीय लोगों ने हमारी बहुत मदद की

सालों से देवघर में स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय और रेलवे पुलिस को जब भी कोई लावारिस लड़की मिलती थी, तो वे उन्हें ही बुलाते थे। हम एक आदिवासी क्षेत्र में रहते हैं और इसके 150-200 किलोमीटर के दायरे में हमारे जैसा कोई ट्रस्ट नहीं है। इसलिए इस क्षेत्र की सभी कॉल मुझे की जाती हैं। वे स्थानीय लोगों की मदद से इन लड़कियों का अपनी लड़कियों की तरह भरण-पोषण और शिक्षित कर रहे हैं। तापसी और खुशी अभी जूनियर कॉलेज में हैं और डॉक्टर बनना चाहती हैं। स्थानीय लोगों ने हमारी बहुत मदद की है। इसलिए पांडे डीएवी स्कूल में अपनी बेटियों का दाखिला कराने में सक्षम हुए, जहां उन्होंने फीस माफ कर दी है। लेकिन हम लगभग हर महीने चूक जाते हैं। भोजन एक बड़ी समस्या है और एक दैनिक संघर्ष है।


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