मनोज राय का जन्म और पालन-पोषण बिहार के सुपौल नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके माता- पिता गरीब थे और परिवार की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। ऐसे में उनका बचपन कठिनाइयों और गरीबी से जूझते हुए बीता।

वहीं कहते हैं ना, जिस घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती, उस घर के बच्चे उम्र से पहले बड़े हो जाते हैं। घर का खर्च चल सके, इसलिए मनोज दिल्ली में नौकरी की तलाश में आ गए थे।

एक छोटे से गांव से निकलकर जब मनोज पहली बार दिल्ली आए तो उस वक्त उन्हें बड़े शहर में तालमेल बिठाने में समय लगा। वह धीरे- धीरे यहां की रोजमर्रा की जिंदगी के बारे में समझ रहे थे। यहां आकर उन्होंने कई जगह नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन कई अच्छी नौकरी न मिल सकी। नौकरी के लिए लगातार प्रयास करने के बाद मिली असफलता के कारण उन्होंने अंडे और सब्जी का ठेला खोला। वहीं इसी के साथ पैसों के लिए उन्होंने कई ऑफिस के फर्श भी साफ किए थे।

इसके बाद, उन्होंने एक डिलीवरी मैन के रूप में काम किया था। बतौर डिलीवरी मैन वह दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में कई वस्तुओं को सप्लाई किया करते थे। मनोज नहीं जानते थे कि डिलीवरी मैन का काम उनके जीवन को बदल देगा। यहां उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया और उनकी मुलाकात विश्वविद्यालय के छात्रों से हुई जिन्होंने उन्हें यूपीएससी परीक्षा के बारे में बताया और गाइड किया।

एक इंटरव्यू में मनोज ने बताया था कि “JNU के छात्रों ने मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी। मैंने सोचा था कि डिग्री प्राप्त करने से मुझे एक अच्छी नौकरी ढूंढने में मदद मिलेगी। इसलिए मैंने श्री अरबिंदो कॉलेज (इवनिंग) में प्रवेश लिया और अंडे और सब्जियां बेचते हुए 2000 में अपना बैचलर ऑफ आर्ट्स (BA) की डिग्री ली”

ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने साल 2001 में अपनी यूपीएससी की तैयारी शुरू करी दी थी। बता दें, उनके मन में कहीं न कहीं सरकारी नौकरी करने की चाहत थी, लेकिन आर्थिक स्थिति के कारण उन्होंने कभी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं किया था। वहीं जब उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कि, उस वक्त सोच लिया था कि वह परीक्षा में सफल होने के लिए दिन रात एक कर देंगे।

मनोज ने तीन साल तक यूपीएससी की तैयारी की और साल 2005 में अपना पहला प्रयास दिया। तैयारी के दौरान पैसे कमाने के लिए उन्होंने स्कूली छात्रों के लिए प्राइवेट कोचिंग लेना शुरू किया और वह यूपीएससी कोचिंग में भी शामिल हुए। वहीं जब उन्होंने यूपीएससी की पहली बार परीक्षा दी थी, उस वक्त उनका सिलेक्शन नहीं हुआ था। वह पहले प्रयास में असफल रहे थे।

वहीं दूसरी बार यूपीएससी की परीक्षा में इंग्लिश लैंग्वेज एक बड़ी बाधा बनकर सामने आई थी। “यूपीएससी में, इंग्लिश और एक रीजनल लैंग्वेज का पेपर पास करना अनिवार्य होता है।

इसलिए यदि कोई भी इसमें पास नहीं होता है, तो जनरल स्टडीज और ऑप्शनल सब्जेक्ट जैसे अन्य पेपरों का मूल्यांकन नहीं किया जाता है। लैंग्वेज के पेपर क्वालीफाइंग पेपर की तरह होते हैं जिनके अंकों का मूल्यांकन फाइनल मार्कशीट में नहीं किया जाता है। बता दें, दूसरे प्रयास में मनोज इंग्लिश के पेपर को पास करने में असफल रहे और उनकी पूरी मेहनत बर्बाद हो गई थी।

अपने तीसरे प्रयास में भी वह प्रीलिम्स परीक्षा में तो सफल हो गए थे, लेकिन मेन्स और इंटरव्यू पास करने में असफल रहे। हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी और 30 साल की उम्र में अपना चौथा प्रयास दिया। इस बार परीक्षा में सफल होने के लिए उन्होंने अपनी राइटिंग स्किल पर काफी ध्यान दिया था।

चौथे प्रयास के दौराव उन्होंने अपनी तैयारी की स्ट्रैटजी को बदला और प्रीलिम्स के लिए पहले पढ़ने के बजाय, मेन्स सिलेबस को पूरा किया। पूरा किया।

बता दें, साल 2010 में आखिरकार उन्होंनें 870वीं रैंक के साथ यूपीएससी परीक्षा पास की थी। उनकी पहली पोस्टिंग बिहार के नालंदा में राजगीर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में हुई थी।


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