पकड़ लिया ‘रेहू’, इमरजेंसी के दौरान जब सुशील मोदी का नाम सुनते ही मच गई थी थाने में खलबली; यातना में बीते थे 108 घंटे
सुशील कुमार मोदी भाजपा के वरिष्ठ नेता थे। वह बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री थे। वह पिछले छह महीने से गले का कैंसर से जूझ रहे थे। 13 मई को दिल्ली के एम्स में उनका निधन हो गया।
बात 1975 की है। केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार थी। उनके खिलाफ देशभर में जबर्दस्त गुस्सा था। जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे। फिर 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी। इसके बाद राजनीतिक विरोधियों और छात्र आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया जाने लगा। जगह-जगह विरोधी नेताओं की धर-पकड़ और जेलबंदी होने लगी। सुशील कुमार मोदी उस वक्त पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ के महामंत्री थे और जेपी आंदोलन के लड़ाकों में प्रमुख चेहरा थे।
ऐसे में सुशील मोदी को भी अपनी गिरफ्तारी की भय सता रहा था। उन्हें पता था कि आज नहीं तो 10 दिनों के अंदर गिरफ्तार होना ही है और जेल जाना ही पड़ेगा। फिर भी वह भूमिगत होना चाह रहे थे, ताकि भूमिगत होकर ही आंदोलन चला सकें। यही सोच कर वह 28 जून, 1975 को पटना छोड़कर निकल पड़े लेकिन स्टीमर से गंगा पार कर उत्तर बिहार जाने के दौरान दूसरे ही दिन पकड़ लिए गए।
जब वह पुलिस द्वारा पकड़े गए तो उन्हें एक छोटे से हाजत में यातनापूर्ण 108 घंटे बिताने पड़े थे। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अपनी किताब ‘बीच समर में’ सुशील कुमार मोदी ने लिखा है, “28 तारीख (जून 1975) को रात्रि 8.45 वाले जहाज से दरभंगा के लिए प्रस्थान किया। गंगा पार करते ही पहलेजा घाट पर भेंट हो गई CID वाले कमलेश्वरी बाबू से। मैं तो भक्क रह गया। बातचीत में मैंने कहा कि हाजीपुर जा रहा हूं। कह तो दिया फिर भी भय हो गया कि कहीं CID वाल’ अगला व्यक्ति परिचय का लिहाज छोड़कर मेरे बारे में प्रशासन व लेख खबर ना कर दे। एक मन हुआ कि रास्ता बदल दूं लेकिन कुछ सोचकर फिर ट्रेन पकड़ ली और खिड़की से लगकर मुंह ढककर सो गया। सोचा जो होगा देखा जाएगा।”
मोदी ने आगे लिखा है, “प्रातः नींद टूटी तो दलसिंहसराय स्टेशन आ चुका था। मुझे पता नहीं था कि यह ट्रेन समस्तीपुर होकर जाती है। पता चला कि तीसरा स्टेशन ही समस्तीपुर है।समस्तीपुर आया तो उतर गया और दयानंद ठाकुर को साथ ले लिया, जिसका चेहरा पुलिस के लिए परिचित नहीं था।दिनभर किसी से भेंट नहीं हुई और शाम में जब दरभंगा की बस पकड़ने के लिए रिक्शा से बस अड्डे की ओर जा रहा था,तभी रेल गुमटी के पास रेल पार करने तक रिक्शा रुक गया।करीब 20 मिनट बाद जब रिक्शा आगे चलने लगा, तभी मूंछ वाला एक नौजवान दयानंद को थाने चलने को कहा। शुरू में दयानंद ने विरोध किया लेकिन फिर हमदोनों को थाने जा पड़ा।”
बकौल मोदी, जब थानेदार ने उनसे पूछा तो उन्होंने अपना नाम संजय कुमार बताया। मोदी ने जानबूझकर झूठ बोला और वह उसी पर अडिग रहे। उन्हें लगा था कि सुशील मौदी कहने पर उन्हें जेल भेज दिया जाएगा, इसलिए उन्होंने गलत नाम का हवाला दिया। बाद में थाने में सीआईडी की टीम आ गई और उसने भी पूछताछ की लेकिन मोदी अपनी बात पर अड़े रहे कि वो संजय कुमार हैं और छपरा के रहने वाले हैं। एल एस कॉलेज के फोर्थ ईयर के छात्र हैं।
इसके बाद मोदी और उनके मित्र को एक हाजत में बंद कर दिया गया। मोदी ने अपनी किताब में लिखा है कि वह हाजत एक छोटी सी बंद कोठरी थी, जिसमें पेशाब और शौच करने की व्यवस्था भी उसी के अंदर थी। एक छोटी सी खिड़की थी,जिससे रोशनी आती थी। एक ही बोरा था, जिस पर आधे में वह बैठे थे और आधे में दयानंद बैठे थे। सुबह उसी कमरे में जिसमें एक शख्स बैठा है, बिना परदे के शौच करना पड़ा था।इस तरह उन्हें इसी कोठरी में कुल 108 घंटे बिताने पड़े थे।
बकौल सुशील मोदी अब तक पुलिस और सीआईडी के लोग उन्हें पहचान नहीं सके थे लेकिन जैसे ही पता चला कि दारोगा ने उन दोनों को डिफेंस ऑफ इंडिया रूल के मुताबिक समस्तीपुर जेल भेज रहा है, तब सुशील मोदी ने थाने में अपना असली परिचय दिया। मोदी लिखते हैं, “यह खबर होते ही थाने में खलबली मच गई थी। पुलिस वालों की तरफ से एक गलत संदर्भ में अपनी प्रशंसा सुन रहा था। किसी ने कहा रेहू (बड़ी मछली) पकड़ा गया। किसी ने कहा, बड़ी मछली फंसी है।” इसके बाद दिनभर सीआईडी और पुलिस वाल पूछताछ की और नाना-नानी से दादा-दादी और घर परिवार सभी की कुंडली खंगाली थी।
Discover more from Voice Of Bihar
Subscribe to get the latest posts sent to your email.