हिंदू धर्म के लिए विशेष है गंगा दशहरा व निर्जला एकादशी, यहां पढ़ें समय, विधि व महत्व सबकुछ
16 जून दिन रविवार को गंगा दशहरा है और धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन मां गंगा का आविर्भाव स्वर्ग से भूमि पर हुआ था। उसके अगले दिन सोमवार को निर्जला एकादशी है।धर्मानुरागी इसे साल की सबसे बड़ी एकादशी मानते हैं। इन दोनों ही मौके पर शहर के प्रसिद्ध रामरेखा घाट, नाथबाबा घाट समेत अन्य गंगा घाटों पर स्नान-दान को लेकर श्रद्धालुओं की अच्छी भीड़ उमड़ती है।
आचार्य अमरेंद्र कुमार शास्त्री ने बताया कि दशमी तिथि 15 की रात्रि एक बजकर दो मिनट पर भोग कर रही है, जो 16 की रात्रि दो बजकर 54 मिनट तक रहेगी। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग बन रहा है।
धर्म शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जेठ महीने के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि में ही मां गंगा का धरती पर अवतरण राजा भगीरथ के प्रयास से हुआ था।इस दिन मां गंगा की विधि-विधान पूर्वक पूजन किए जाने से सभी प्रकार के शोक-दोष का निवारण हो जाता है। इस दिन श्रद्धालु भक्तों को मां गंगा की स्तुति, स्तोत्र व उनकी कथा का श्रवण करना चाहिए।
दूसरी ओर, निर्जला एकादशी व्रत 17 तारीख दिन सोमवार को है। इसे भीमसेनी एकादशी व्रत स्मार्तानाम से भी जाना जाता है। वैष्णवानाम एकादशी का व्रत मंगलवार को करेंगे।
सबसे अधिक फल देने वाली है निर्जला एकादशी
बता दें कि निर्जला एकादशी को साल की 24 एकादशियों में सबसे बढ़कर फल देने वाली समझी जाती है। मान्यता है की इस एकादशी का व्रत रखने से समस्त एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त हो जाता है।आचार्य ने कहा कि निर्जला एकादशी का व्रत अत्यंत संयम साध्य है। वैसे तो ज्येष्ठ के दोनों एकादशी व्रत में अन्न खाना वर्जित है। लेकिन धर्म ग्रंथों में इस व्रत को सम्पूर्ण सुख, भोग और मोक्ष देने वाला बताया गया है।
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