एक ऐसा गांव जहाँ 100 साल से लोग नहीं कर रहे श्राद्ध, पितृ पक्ष में ब्राह्मण का प्रवेश वर्जित
भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म और दान पुण्य की परंपरा है. इसके तहत ब्राह्मणों को भोजन दान आदि किया जाता है मगर, संभल जिले के गुन्नौर तहसील इलाके के गांव भगता नगला के ग्रामीण श्राद्ध माह में ना तो ब्राह्मण को भोजन कराते हैं और ना ही इन दिनों कोई ब्राह्मण इस गांव में जाता है. यही नहीं श्राद्ध के दिनों में इस गांव में ना ही कोई भिक्षु जाएगा और यदि कोई भूल वश चला भी जाता है तो उसे भिक्षा नहीं दी जाती. पितृ पक्ष के 16 दिन गांव में पूजा-पाठ भी नहीं होता है.इस गांव के लोग करीब 100 साल से श्राद्ध नहीं करते हैं.
श्राद्ध कर्म पर पाबंदी के अलावा पितृ पक्ष के 16 दिन तक ग्रामीण मृतकों की आत्मा की शांति के लिए किसी भी प्रकार का पूजा पाठ, हवन आदि नहीं कर करते. पितृ पक्ष के दिनों में इस गांव में ब्राह्मणों को एंट्री नहीं दी जाती. ब्राह्मणों की एंट्री बैन करने के पीछे की क्या कहानी है. यह गांव के निवासी बुजुर्ग रेवती सिंह बताते हैं कि प्राचीन काल में गांव की एक ब्राह्मण महिला भगता नगला गांव में किसी ग्रामीण के घर पर मृतक परिजन का श्राद्ध सम्पन्न कराने आई थी. लेकिन श्राद्ध कर्मकाण्ड सम्पन्न कराने के बाद गांव में तेज बारिश शुरू हो गई थी.
महिला को पति ने घर से निकाल दिया
वहीं बरसात की वजह से ब्राह्मण महिला को कई दिन तक ग्रामीण के घर पर ही रुकना पड़ा. कई दिन बाद बारिश रुकने के बाद ब्राह्मण महिला जब वापस अपने घर पहुंची तो उसके पति ने उसके चरित्र पर उंगली उठाते हुए अपमानित कर उसे घर से निकाल दिया था. पति से अपमानित होने के बाद ब्राह्मण महिला वापस भगता नगला गांव पहुंची. वहीं ग्रामीणों को सारी बात बताते हुए कहा की पितृ पक्ष में श्राद्ध सम्पन्न कराए जाने की वजह से उसे अपमानित किया गया है.
आपने श्राद्ध किया तो आपका बुरा हो जाएगा
महिला ने ग्रामीणों से यह भी कहा कि आपकी वजह से मेरे पति ने मुझे घर से निकाल दिया है. इसलिए यदि आपने श्राद्ध किया तो आपका बुरा हो जाएगा. ब्राह्मण महिला की पीड़ा को श्राप मानकर इस गांव के लोग करीब 100 साल से श्राद्ध न करने की परंपरा पर आज भी कायम हैं. श्राद्ध को छोड़कर बाकी के दिनों में ब्राह्मणों का गांव में आना-जाना रहता है. विवाह आदि संस्कार भी ब्राह्मण ही संपन्न कराते हैं. गांव के लोग इसे बुजुर्गों की परम्परा बताते हैं.
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