नई दिल्ली, एजेंसी। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण ने सोमवार को गो फर्स्ट की संपत्तियों को बेचकर उसके कर्ज का भुगतान करने को मंजूरी दे दी। इसके साथ ही इस बजट एयरलाइन के खिलाफ 20 महीने से चल रही दिवालिया कार्यवाही समाप्त हो गई। कर्ज चुकाने के बाद कंपनी को भंग किया जाएगा। गो फर्स्ट एयरवेज के कर्जदाताओं की समिति ने एनसीएलटी से एयरलाइन को समाप्त करने का अनुरोध किया था। कर्ज में डूबी गो फर्स्ट मई 2023 में दिवालिया अदालत में पहुंची।
उस समय एयरलाइन के पास भारत के विमानन क्षेत्र में 6.9 बाजार हिस्सेदारी थी, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पट्टेदारों को 54 विमानों के अपने बेड़े को वापस लेने की अनुमति देने के बाद उसके पास कोई व्यवहार्य संपत्ति नहीं बची थी। 26 अप्रैल के अपने आदेश में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय को कई पट्टेदारों की याचिका के बाद एयरलाइन के सभी पट्टे पर दिए गए विमानों का पंजीकरण रद्द करने का आदेश दिया, जिन्होंने अपनी संपत्ति वापस लेने की मांग की थी। इस आदेश के बाद एयरलाइन के पास विमान नहीं रह गए, जिसके कारण इच्छुक खरीदार, स्पाइसजेट के अजय सिंह और ईजमाईट्रिप के निशांत पिट्टी के एक ग्रुप को अपनी बोली वापस लेनी पड़ी।
गो फर्स्ट भारत की दिवालिया प्रक्रिया के तहत समाप्त होने जा रही दूसरी प्रमुख एयरलाइन होगी। इससे पहले जेट एयरवेज के साथ यही हुआ। सर्वोच्च न्यायालय ने नवंबर 2024 में जेट एयरवेज के परिसमापन का आदेश दिया था, क्योंकि इसकी समाधान योजना अव्यवहारिक पाई गई थी। एयरलाइन की कुल देनदारियां लगभग 11,000 करोड़ रुपये हैं। गो फर्स्ट पर बैंक ऑफ बड़ौदा, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, ड्यूश बैंक सहित कर्जदाताओं का 6,521 करोड़ रुपये का बकाया है।