पिछले एक साल से, ओडिशा के देबरीगढ़ वन्य अभ्यारण्य के सभी जानवर बिना डरे जंगल के आसपास घूमने जाते हैं। इन जानवरों को पूरी तरह से प्राकृतिक माहौल देने का बीड़ा उठाया है, इको फ्रेंडली गांव ढोड्रोकुसुम के 48 परिवारों ने।
यहां रहने वाले 48 परिवार के करीबन 200 से 250 लोगों ने अपने गांव को प्लास्टिक फ्री बनाया है। गांव में जगह-जगह कचरादान बना है और सभी घरों में ईंधन बचाने वाला चूल्हा इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं गांववाले अब जंगल के जानवरों को अपना दुश्मन नहीं दोस्त समझते हैं।
अनोखा तालमेल है यहां जानवर और इंसानों में
गांववालों की इस पहल में उनकी मदद कर रही हैं, हीराकुंड अभयारण्य की DFO अंशु प्रज्ञान दास। एक साल पहले, जब वह यहां वन अधिकारी के तौर पर तैनात हुईं थीं तब उन्होंने डेब्रीगढ़ वन्यजीवों के लिए एक सुन्दर माहौल तैयार करने का फैसला किया।
हीराकुंड जलाशय के पास होने के कारण उन्होंने देखा कि जंगल के जानवर इसी गाँव से होकर आते-जाते हैं। ऐसे में अगर उन्हें यहां प्राकृतिक मौहल न मिले तो जानवर खुलकर नहीं रह सकते। जानवरों और इंसानों के बीच तालमेल लाने के लिए उन्होंने कई कार्यक्रम किए। इस काम की शुरुआत उन्होंने, गांव के हर घर में शौचालय बनाने से की थी। जल्द ही उन्होंने पूरे गांव को खुले में शौच से मुक्त करा दिया।
गांव वाले जंगल की लकड़ियां कम से कम काटे इसलिए उन्होंने विभाग की ओर से हर घर में एक एनर्जी सेविंग चूल्हा भी मुहैया करवाया। इसके अलावा गांव में जगह-जगह ईको-फ्रेंडली मिट्टी के डस्टबिन बनाए गए हैं।
अंशु प्रज्ञान कहती हैं कि “यहां जंगल में सांबर, भारतीय गौर, हिरण और मोर जैसे जानवर अक्सर बाहर घूमते आते हैं। जब से गांववालों ने यहां एक प्लास्टिक मुक्त माहौल बनाया है तब से जानवरों के आवन-जावन में भी बढोतरी हुई है और इंसानों और जानवरों के बीच एक अच्छा रिश्ता बन गया है।”
उन्हें उम्मीद है कि यह इको फ्रेंडली गांव आने वाले समय में आसपास के अन्य गांवों के लिए भी प्रेरणा बनेगा और जल्द ही देश में कई ऐसे ग्रीन विलेज़ बन पाएंगे।