जल संसाधन प्रबंधन की प्राचीन पद्धतियां आज भी प्रासंगिक : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु

59 1024x760 1 jpg

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जल संसाधन प्रबंधन की प्राचीन पद्धतियों को आज भी प्रासंगिक बताते हुए कहा कि प्राचीन जल प्रबंधन प्रणालियों पर शोध होना चाहिए और आधुनिक संदर्भ में उनका व्यावहारिक उपयोग करना चाहिए। राष्ट्रपति मुर्मु ने आज मंगलवार को नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में 8वें भारत जल सप्ताह के उद्घाटन समारोह को संबोधित करने के दौरान यह बातें कहीं। राष्ट्रपति ने कहा कि जल संकट से जूझ रहे लोगों की संख्या को कम करने का लक्ष्य पूरी मानवता के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों के तहत जल और स्वच्छता प्रबंधन में सुधार के लिए स्थानीय समुदायों की भागीदारी के समर्थन काे और मजबूत करने पर जोर दिया गया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सभी को जल उपलब्ध कराने की व्यवस्था प्राचीन काल से ही हमारे देश की प्राथमिकता रही है। लद्दाख से लेकर केरल तक हमारे देश में जल संचय और प्रबंधन की प्रभावी पद्धतियां मौजूद थीं। ब्रिटिश शासन के दौरान ऐसी पद्धतियां धीरे-धीरे लुप्त हो गईं। हमारी पद्धतियां प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित थीं। प्रकृति पर नियंत्रण करने की सोच के आधार पर विकसित पद्धतियों के बारे में पूरे विश्व में अब पुनर्विचार किया जा रहा है। जल संसाधन प्रबंधन के विभिन्न प्रकार के कई प्राचीन उदाहरण पूरे देश में उपलब्ध हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं।

कुएं, तालाब, जल-कुंड और पोखरी हमारे समाज के लिए जल बैंक की तरह : राष्ट्रपति

राष्ट्रपति ने कहा कि सरोवर, कुएं, तालाब, जल-कुंड और पोखरी जैसे सभी जलस्रोत सदियों से हमारे समाज के लिए जल बैंक की तरह रहे हैं। हम बैंक में पैसा जमा करते हैं, उसके बाद ही बैंक से पैसा निकालकर उसका उपयोग कर सकते हैं। यही बात पानी पर भी लागू होती है। लोग पहले जल-संचय करेंगे, तभी वे जल का उपयोग कर पाएंगे। धन का दुरुपयोग करने वाले लोग संपन्नता से निर्धनता की स्थिति में चले जाते हैं। उसी तरह, वर्षा वाले क्षेत्रों में भी पानी की कमी देखी जाती है। सीमित आय का समझदारी से उपयोग करने वाले लोग अपने जीवन में आर्थिक संकट से बचे रहते हैं। उसी तरह, कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल का संचय करने वाले गांव जल संकट से बचे रहते हैं। राजस्थान और गुजरात के कई इलाकों में ग्रामीणों ने अपने प्रयासों और जल संचय के प्रभावी तरीकों को अपनाकर जल के अभाव से मुक्ति पाई है।

राष्ट्रपति ने कहा कि पृथ्वी पर उपलब्ध कुल पानी का मात्र 2.5 प्रतिशत ही मीठा पानी होता है। उसमें से भी मात्र एक प्रतिशत ही मानव उपयोग के लिए उपलब्ध हो पाता है। विश्व के जल संसाधनों में भारत की हिस्सेदारी चार प्रतिशत है। हमारे देश में उपलब्ध जल का लगभग 80 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में उपयोग किया जाता है। कृषि के अलावा बिजली उत्पादन, उद्योग और घरेलू जरूरतों के लिए पानी की उपलब्धता आवश्यक है। जल संसाधन सीमित हैं। जल के कुशल उपयोग से ही सभी को जल की आपूर्ति संभव है।

राष्ट्रपति ने कहा कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में ‘कैच द रेन-व्हेयर इट फॉल्स व्हेन इट फॉल्स’ के संदेश के साथ एक अभियान शुरू किया है। इस अभियान का उद्देश्य जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और जल प्रबंधन के अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करना है। वन संपदा को बढ़ाना भी जल प्रबंधन में सहायक होता है।

उन्होंने कहा कि जल संचय और प्रबंधन में बच्चों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे अपने परिवार और आस-पड़ोस को जागरूक कर सकते हैं और खुद भी जल का सही उपयोग कर सकते हैं। जल शक्ति के प्रयासों को जन आंदोलन का रूप देना होगा, सभी नागरिकों को जल-योद्धा की भूमिका निभानी होगी। राष्ट्रपति ने कहा कि ’भारत जल सप्ताह-2024’ का लक्ष्य समावेशी जल विकास और प्रबंधन है। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सही माध्यम चुनने के लिए जल शक्ति मंत्रालय की सराहना की।

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.
Recent Posts