राजगीर के अजातशत्रु मैदान की खुदाई में मिली प्राचीन दीवारें और लोहे का कारखाना

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नालंदा: बिहार के ऐतिहासिक शहर राजगीर के किला मैदान की खुदाई 1905-06 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई थी. अब 2024 में फिर से शुरू हुई है. इस नई खुदाई में कई चौंकाने वाले अवशेष मिले हैं जो यह साबित करते हैं कि राजगीर का किला मैदान देश के सबसे प्राचीन स्थलों में से एक है.

राजगीर किला मैदान की ऐतिहासिक खुदाई

मैदान की खुदाई में यहां से स्नान घर, व्यवस्थित सड़कों के साथ-साथ एक लोहे का कारखाना भी मिला है. हालांकि इस कारखाने की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है, लेकिन पहचान के लिए पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने कुछ अवशेष ले लिए हैं.

प्राचीन कारखाने का अवशेष

खुदाई के दौरान मिले अवशेषों से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि राजगीर के किला मैदान का पूर्वी भाग आवासीय था, जबकि पश्चिमी भाग हथियार निर्माण के लिए कारखाने के रूप में उपयोग किया जाता था. यहां हथियारों के भंडारण और बिक्री का भी संकेत मिलता है.

खुदाई पर आलेख हुआ प्रकाशित

खुदाई में मिले अवशेषों का अध्ययन करने के लिए बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान और वैज्ञानिक और प्रवर्तित अनुसंधान अकादमी, गाजियाबाद की डॉ. अंजलि त्रिवेदी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना अंचल के प्रमुख डॉ. सुजीत नयन ने हाल ही में एक आलेख प्रकाशित किया है.

किले की मजबूत सुरक्षा प्रणाली और ऐतिहासिक महत्व

खुदाई में एक 40 किमी लंबी साइक्लोपियन दीवार भी मिली है, जो प्राचीन समय में सुरक्षा का एक मजबूत तंत्र माना जाता था और प्राचीन इंजीनियरिंग के बेहतरीन उदाहरण के रूप में सामने आई है. राजगीर का इतिहास 3000 साल से भी पुराना है और यह मगध राज्य की पहली राजधानी थी, जिसे ‘राजगृह’ के नाम से जाना जाता है. यहां से मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ था.

”किला मैदान की खुदाई में एक 25 मीटर मोटी दीवार भी मिली है, जो किले के चारों ओर घेराबंदी करती थी. इस दीवार को शेरशाह के कार्यकाल से जोड़ा जा रहा है. फिलहाल इस दीवार की खुदाई जारी है और इसके माध्यम से राजगीर की ऐतिहासिक धरोहर को और अधिक समझने की कोशिश की जा रही है.”- डॉ. सुजीत नयन

राजगीर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर

राजगीर सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल नहीं है, बल्कि यह भारत की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रमाण भी है. इस क्षेत्र की खुदाई से हमें न केवल राजगीर के अतीत की गहरी जानकारी मिलती है, बल्कि इस सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ताने-बाने का भी पता चलता है, जिसने भारतीय सभ्यता को सहस्राब्दियों से आकार दिया है.

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