अब भारतीय सेना ने बिहार के गया के गहलौर में माउंटेन मैन स्व. दशरथ मांझी के महान प्रयासों को मान्यता दी है. माउंटेन मैन के गहलौर के मूल निवासियों के लिए की गई सेवा में महान प्रयासों को मान्यता देते हुए उनके बेटे भागीरथ मांझी को 5 लाख का चेक प्रदान किया है.
दशरथ मांझी के बेटे को सेना ने सौंपा चेक:भारतीय सेना के हवाले से बताया गया है, कि राष्ट्र निर्माण और सामुदायिक कल्याण के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता को माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने प्रदर्शित किया. इसे लेकर भारतीय सेना ने गहलौर गांव के मूल निवासियों की सेवा में स्व. दशरथ मांझी द्वारा किए गए महान प्रयासों को मान्यता दी है.
‘लोगों के साथ खड़ी है सेना’: यह सहायता सेवा के सतत विकास को बढ़ावा देने और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए समर्पित व्यक्तियों को सशक्त बनाने के लिए चल रहे प्रयासों के तहत किए जा रहे प्रयासों का एक हिस्सा है. इस अवसर पर लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेन गुप्ता,पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम वाईएसएम जीओसी- इन -सी सेंट्रल कमांड ने कहा, कि भारतीय सेना हमेशा लोगों के साथ खड़ी रही है.
“भारतीय सेना न्यास केवल सुरक्षा चुनौतियां के समय ही नहीं, बल्कि सामाजिक और विकासात्मक कार्यों में भी साथ है. यह पहल जमीनी स्तर पर प्रयासों का समर्थन करते हुए हमारे व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो सार्थक बदलाव लाते हैं और विकसित भारत की दिशा में गति प्रदान करते हैं.”- अनिंद्य सेन गुप्ता, लेफ्टिनेंट जनरल जीओसी, इंन-सी सेंट्रल कमांड
माउंटेन मैन के बेटे ने किया आभार व्यक्त: वहीं, भारतीय सेना के द्वारा इस तरह का सम्मान मिलने के बाद माउंटेन मैन दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी ने सेना के समर्थन को स्वीकार किया. वहीं, समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों पर काबू पाने में सामूहिक प्रयास के महत्व पर जोर दिया. भारतीय सेना राष्ट्र के लिए ताकत के स्तंभ के रूप में अपनी भूमिका के लिए प्रतिबद्ध है, जो सामाजिक प्रगति में योगदान देने के लिए युद्ध के मैदान से परे अपनी पहुंच का विस्तार करती है.
कौन थे दशरथ मांझी: दशरथ मांझी बिहार के गया के गहलौर घाटी के निवासी थे. स्व. दशरथ मांझी को पर्वत पुरुष के नाम से जाना जाता है. इन्होंने गहलौर घाटी के पहाड़ का सीना चीरकर सुगम रास्ता बना दिया था. छेनी हथौड़ी से अकेले 22 साल तक अथक परिश्रम कर पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया था. आज यह रास्ता लाखों लोगों के लिए सुविधा का माध्यम बन गया है. पत्नी फाल्गुनी के उबड़ खाबड़ रास्ते से गिरने और फिर सड़क नहीं होने से समय से इलाज नहीं मिल पाने पर मौत हो जाने से दुखी हुए बाबा दशरथ मांझी ने गहलौर पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था.