दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने आज सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. वह करीब 11 बजे लगभग राजभवन पहुंची और उपराज्यपाल वीके सक्सेना से मुलाकात कर अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसी के साथ एलजी ने पिछली विधानसभा को भंग करने की अधिसूचना जारी भी जारी कर दी है। इस बदलाव के साथ दिल्ली की राजनीतिक स्थिति में नया मोड़ आ गया है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए यह चुनाव एक बडी हार साबित हुआ है। मुख्यमंत्री आतिशी कालकाजी सीट से जीतने में तो सफल रही थीं, लेकिन पार्टी को आम तौर पर हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में आतिशी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का फैसला किया। वह एलजी सचिवालय पहुंची और वहां वीके सक्सेना को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
भाजपा की ऐतिहासिक जीत
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 48 सीटें जीतकर शानदार बहुमत हासिल किया। इस तरह भाजपा ने 26 साल बाद दिल्ली में सत्ता में वापसी की। भाजपा के नेताओं ने इस जीत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और भाजपा की सशक्त रणनीति का परिणाम बताया। वहीं आम आदमी पार्टी (AAP) को सिर्फ 22 सीटें ही मिल सकीं और वह बहुमत से चूक गई। भाजपा ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए कई रणनीतियां तैयार की हैं, जिससे भाजपा के नेताओं का आत्मविश्वास भी बढ़ चुका है।
भाजपा की रणनीति और भविष्य के कदम
दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ गया है। केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा कि दिल्ली में जीत के बाद अब भाजपा का ध्यान पंजाब पर होगा, जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है। उन्होंने पंजाब में भाजपा की सत्ता की बहाली के लिए आह्वान किया। इस बीच, भाजपा नेताओं ने दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के नाम को लेकर बैठक की। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एक बैठक बुलाई है। भाजपा के अनुसार, दिल्ली के मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश दौरे के बाद आयोजित किया जाएगा, जिसमें भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हो सकते हैं।
दिल्ली में कांग्रेस की भूमिका
इस चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह से नाकाम रही और उसे एक भी सीट नहीं मिली। हालांकि, कांग्रेस ने अपनी हार के बावजूद आम आदमी पार्टी को काफी नुकसान पहुँचाया। एग्जिट पोल्स के अनुसार, कांग्रेस के वोट आम आदमी पार्टी को नुकसान पहुँचाने के लिए जिम्मेदार थे, जिससे आम आदमी पार्टी केवल 22 सीटों तक सीमित रह गई। अगर AAP और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ होता, तो दिल्ली में सरकार बनाने का परिदृश्य कुछ और हो सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
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