भारत देश की खूबसूरती! मैं मुसलमान हूं और छठ मैया की भक्त हूं, 40 सालों से छठ मैया की कृपा से घर चलता; पढ़े स्पेशल रिपोर्ट

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हम लोग बिहारी हैं. वही बिहारी जो हर साल धूमधाम से छठ पूजा का आयोजन करते हैं. दुनिया वाले भले उगते हुए सूर्य की पूजा करते हैं लेकिन हम डूबते हुए सूर्य को भी अर्क देते हैं और उन्हें नमस्कार करते हैं. छठ पूजा देश का एकमात्र ऐसा पर्व है जहां जाती और धर्म का कोई बंधन नहीं दिखता. क्या अमीर क्या गरीब, क्या राजा क्या रंक सब के सब छठ परमेश्वरी के भक्त हैं. विश्वास ना हो तो पटना सहित बिहार के किसी भी जिले में घूम कर देख लीजिए. बाद से बड़ा नशेड़ी भी खरना पूजा से लेकर छठ पूजा तक नशा नहीं करता. शिखर गुटखा या पान खाने वाला आदमी रोड पर थूक नहीं फेंकता. आज छठ पूजा के अवसर पर हम आपको कुछ मुस्लिम औरतों की कहानी बताने जा रहे हैं जो अपने आप को छठ मैया की भक्ति मानती है… पिछले 40 सालों से उनका कहना है कि छठ मैया की कृपा से उनका घर चलता है. परिवार में खुशहाली बनी रहती है…

लोक आस्था का महापर्व छठ शुरू होने में अब सिर्फ दो दिन का वक्त बचा है। छठ पर्व को लेकर तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। इसमें मिट्टी के चूल्हे का खास महत्व होता है। छठ का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर ही बनाया जाता है।पटना के वीरचंद पटेल मार्ग के किनारे मुस्लिम समुदाय की महिलाएं हर साल यहां मिट्टी का चूल्हा बनाकर बेचती हैं। लगभग 40 सालों से यह महिलाएं छठ के लिए चूल्हा बड़े आस्था और श्रद्धा से बनाती हैं।

चूल्हा बनाने वाली कुरेशा खातून बताती हैं कि मैं पिछले 40 साल से छठ के लिए चूल्हा बना रही हूं। छठ हमारे लिए बड़ा पर्व है। इसलिए हम इतनी मेहनत करते हैं।कुरेशा ने बताया कि पहले हमारे पूर्वज इसे बनाते थे। उनके गुजरने के बाद हम बनाने लगे। हर साल 150 से 200 चूल्हे बनाती हूं। इस साल भी छठ के लिए चूल्हे बनकर तैयार हैं।

कुरेशा ने बताया कि एक चूल्हे को बनाने में लगभग एक से डेढ़ घंटे का वक्त लगता है। फिर इसकी रंगाई की जाती है। चूल्हा बनाने के बाद इसे प्रणाम करते हैं। तब ग्राहक को देते हैं।इस चूल्हे में किसी का पैर तक नहीं लगने देते। बच्चों को भी दूर बिठाते हैं, क्योंकि यह बहुत ही पवित्र त्योहार है और इसकी पवित्रता का भी ध्यान रखते हैं।

कुरेशा ने बताया कि पिछले साल यह चूल्हा 150 रुपए लेकर 400 रुपए तक में बिक रहा था, लेकिन इस साल मिट्टी के चूल्हे के दाम में कमी आई है। इस साल यह चूल्हा 100 रुपए से लेकर 200 रुपए तक में बिक रहा है।चूल्हे को तैयार करने के लिए यह सबसे पहले पुनपुन के साफ इलाके से अपनी पूंजी का इस्तेमाल कर मिट्टी मंगाती हैं। चूल्हा बनाने से पहले मिट्टी से कंकड़-पत्थर चुनकर निकालती हैं। इसके बाद पानी और गेहूं का भूसा मिलाकर मिट्टी को चूल्हे का आकार देती हैं।

फूलो खातून कहती हैं कि मेरी सास पहले चूल्हा बनाने का काम करती थी। उनके बाद मैंने शुरू कर दिया। चूल्हा बनाते हुए मुझे 20 साल हो गए। हर साल लगभग 200 तक चूल्हा बनाती हूं।छठ महापर्व होता है। हम लोगों का भी पर्व होता है तो हिंदू समाज के लोग मस्जिद में आते हैं। इसलिए हम लोग भी इसके महत्व समझते हैं। पहले मेरी मौसी भी छठ करती थीं। मेरे बेटे की तबीयत खराब हुई थी, तो हॉस्पिटल में मन्नत मांगी थी कि मेरा बेटा ठीक हो जाएगा, तो हम 5 साल सूप चढ़ाएंगे।मेरा बेटा जब डेढ़ महीने का था, तब उसका पैर टूट गया था, लेकिन छठी मैया के कृपा से वो चलने लगा तो अब सूप चढ़ा रहे हैं।

Kumar Aditya: Anything which intefares with my social life is no. More than ten years experience in web news blogging.